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________________ अपूर्व कलाकृति मुनि दुलहराज युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ ! आपने ज्ञान को आत्मा से अनुबंधित कर ज्ञान की आराधना की। •आपने अपनी श्रद्धा को आत्मा में केन्द्रित कर दर्शन की आराधना की। आप ने अपने समस्त कर्म को आत्मा की परिक्रमा में प्ररित कर चारित्र की आराधना की। आचार्य श्री तुलसी ने आपको प्रकाश से ही नहीं भरा, आपको प्रकाश बना दिया। आपने एक ऐसी परछाई का अनुसरण किया, जो परछाई आगे से आगे बढ़ती गई। किन्तु एक बिन्दु ऐसा आया कि आपने उस परछाई को पकड़ लिया। आज हम उस कलाकार की अर्चा-पूजा कर रहे हैं, जिसकी कलाकृति आज स्वयं कलाकार बन गई है। आज हम उस कृति की अर्चा पूजा कर रहे हैं, जिसने अध्यात्म जगत में एक क्रान्ति का शंखनाद किया है और अपने अमूल्य अनुभवों से जनत्रास को मिटाने का अनुपम प्रयास किया है। तेरापंथ-सङ्घ के सभी श्रमण आज आपको पाकर धन-धन्य हैं, कृतकृत्य हैं । हम सब अप ने अन्तस्तल से आप के प्रति श्रद्धा-नत हैं और यह प्रतिज्ञा करते हैं कि हम आपके आदेशों का उसी रूप में पालन करते रहेंगे जैसे हम करते रहे हैं । •आपके पावन चरण सफलता की ओर निरंतर बढ़ते रहें। हम सब आपके साथ हैं । खण्ड ४, अंक ७-८ ३७६
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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