SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वे सारे संघ के शीर्षस्थ व्यक्ति बन गए साहित्य परामर्शक मुनि बुद्धमल आज हमारे लिए मर्यादा-महोत्सव अतिरिक्त महोत्सव बन गया। यह कल्पना नहीं थी कि इस प्रकार आज यह एक नया कार्य होने वाला है । आचार्य श्री अपने कार्यों को अत्यन्त गुप्त रखते हैं और अचानक लाट्री खोल देते हैं। आचार्यवर ने आज अपने उत्तराधिकारी के रूप में महाप्रज्ञ मुनि श्री नथमल जी का चुनाव करके संघ की एक बहुत बड़ी आवश्यकता की पूर्ति कर दी है । इससे आचार्य श्री ने जहाँ अपने दायित्व का निर्वाह किया है वहाँ सारे समाज को आनन्द से आप्लावित कर दिया है। आज की यह घटना हम सबकी एक चिरकालीन प्यास को शान्त करने वाली है। मुनि श्री नथमल जी आचार्य श्री के एक विद्वान एवं दार्शनिक शिष्य हैं। उनकी कर्मठता से हर कोई परिचित है। ऐसे सुयोग्य युवाचार्य को पाकर हम सब अपने को गौरवान्वित अनुभव करते हैं। आचार्य श्री नए-नए कार्य करने के लिए तो प्रसिद्ध रहे ही हैं, पर उनकी कार्यपद्धति बहुधा चौंका देने वाली भी होती है । अपने रहस्य को वे इतना गुप्त रखते हैं कि किसी को भनक नहीं पड़ने देते । आज का यह कार्य भी उन्होंने उसी प्रकार से अचानक किया कि सभी को कल्पनातीत लगा। इस चुनाव में सभी को प्रसन्नता हुई है, पर मुझे अतिरिक्त प्रसन्नता हुई है । मुनि श्री बाल्यावस्था से ही मेरे सहपाठी एवं अभिन्न साथी रहे हैं। हमारे समय में अन्य भी अनेक बाल साधु थे। परन्तु हम दोनों में बहुत अच्छी बनती थी। हम लोग आचार्य श्री (मुनि तुलसी) के पास साथ-साथ पढ़ा करते थे। एक दूसरे को देखकर हम हंसा बहुत करते थे, इसलिए पाठ याद करते समय हमें कमरे के दो कोनों में भींत की ओर मुह करके बिठाया जाता था, फिर भी बालचापल्य के कारण हम एक दूसरे को देखा करते और हंसा करते। हमारी मित्रता बहुत अच्छी और गहरी थी। बड़े होने के पश्चात् भी यदा-कदा हम मजाक कर लिया करते थे। मुझे याद है एक बार किसी बात पर मैंने मुनि श्री से कहा था कि आप मुझे कहने के अधिकारी नहीं है। क्योंकि मैं आपसे अवस्था में नौ दिन बड़ा हूं। मुनि श्री ने तत्काल कहा-तुम तो नौ दिन ही बड़े हो, पर मैं तुमसे दीक्षा में नौ महीने बड़ा हूं। खण्ड ४, अंक ७-८ ३७७
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy