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स्थितप्रज्ञ : युवाचार्य
मुनि छत्रमल
१. विद्यानिधि ! प्रतिमाधनी!, आशुप्रज्ञ! समयज्ञ!
आगमज्ञ! स्थितप्रज्ञ! जय, युवाचार्य महाप्रज्ञ! २. श्रद्धास्पद ! श्री चरण में, सन्त 'छत्र' नगराज ।
मोहनमुनि युत वंदना, करते हम अव्याज ।। ३. किया देव ने आप को, सकल सङ्घ सिर मौर ।
सुनकर शुभ संवाद यह, हैं हम हर्ष विभोर ।। ४. काश ! देखते दृश्य वह, हम भी रह कर पास ।
किन्तु गात्र बाधक बना, था न पूर्व आभास ॥ ५. सह जाए, सह वढिए, बहुत रहे हैं साथ ।
देख समुन्नति फूलता, सीना नौ-नौ हाथ ।। ६. योग्य देखकर आपको, समुचित समय नियुक्त ।
बहुत-बहुत गुरुदेव ने, किया काम उपयुक्त । ७. आप सरीसे शिष्य से, थे गुरुवर आश्वस्त ।
किन्तु हो गया संघ भी, अब निश्चिन्त समस्त । ८. स्वीकृत करें बधाइयां, भूरि-भूरि शुभ वेष ।
हैं हमेश प्रस्तुत, मिले, जो आज्ञा निर्देश ।। ६. चिरजीवी गणपति रहें चिरजीवी हों आप ।
युगल हस्तियों का बढ़ें, दिन-दिन प्रबल प्रताप ।। १०. ही-श्री-धी-ति-कीत्ति से, वर्धमान हों आप ।
आधि-व्याधि-उपाधियां, सहसा हो सब साफ । ११. आशा ही नहीं अपितु है, दिल में दृढ़ विश्वास ।
होगा संघ विकास हित, प्रतिपल सफल प्रयास ।। १२. उवघाटित करते रहें, नये-नये उन्मेष ।
धर्म-संघ की मगत में, शोभा बढे विशेष ।। १३. शुभाशंसाएं ये सभी, करें "छत्र' की दर्ज।
आय्यं प्रवर ! श्री चरण में करें वन्दना अर्ज ।।
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तुलसी-प्रज्ञा