SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १. मैं युवाचार्यवर्य श्री महाप्रज्ञ जी की अपने अन्तःकरण से स्तवना करता हूं। सौभाग्य से जिन्होंने युवाचार्य बनने के पूर्व ही अपने पावन चरण कमलों द्वारा लाडनूं पधारते समय हमारे मध्यवर्ती नगर सुजानगढ़ को प्रत्यक्ष रूप से पावन किया। तत्पश्चात् जिन्होंने आचार्य श्री तुलसी के चरणों में युवाचार्य जैसे अभिनव, ललित और गरिमामय पद को पा लिया। २. पूज्यवर आचार्यवर ने मर्यादा महोत्सव पर जनसमूह के बीच सगुण अथवा निगुण 'नथमल' इस पुरातन नाम को बदल कर उनको गुणयुत 'महाप्रज्ञ' के नाम से संबोधित किया । पर नाम से क्या ? 'महाप्रज्ञ' नाम आज निश्चित ही विस्तृत होकर सम्यक् प्रकार से उदित हो गया है और अपनी प्रभुता के कारण प्रसिद्ध बन गया है। ३. जिस प्रकार काली घटा वाले बादलों को देखकर मयूर हर्षित और प्रफुल्लित होकर नाचने लग जाते हैं, चकोर पक्षी उद्गत होते हुए चंद्रमा को देखकर आनन्दित हो जाते हैं और वसन्त ऋतु के आने पर सारी पृथ्वी हरी-भरी और लहलहाने लग जाती है, उसी प्रकार युवाचार्यश्री की नियुक्ति से हम मुनिजन अत्यन्त प्रसन्न और अपने आपको धन्य मानते हैं। ४. अपने अनुनय-विनय के द्वारा मुनि 'नथमल' नाव से नाविक बन गए-शिष्य से गुरु बन गए-यह बहुत बड़ा आश्चर्य हमारे हृदय में नहीं समा रहा है। मैं उनके प्रति अपनी मंगल कामना करता हूं कि उनका नेतृत्व फलदायी बने और उनकी यशोगाथा सर्व प्रकार से सर्वत्र व्याप्त हो। ५. तेरापंथ धर्मसंघ के अधिशास्ता का कैसा प्रशस्त सामर्थ्य है कि जिन्होंने एक क्षण में बिन्दु को सिंधु बना दिया। ६. जिस प्रकार चंद्रमा अपनी ज्योत्स्ना से विश्व को शीतलता देता है, सूर्य अपनी किरणों से विश्व को ज्योति देता है और इन्द्र अपने शस्त्र वज्र से विश्व को शासित करता है, उसी प्रकार कामनाओं से रहित युवाचार्य श्री 'महाप्रज्ञ' अनेक अर्हताओं से सम्पन्न, पूर्वाजित पुण्य समूह से प्राप्त इस भिक्षु शासन को रत्न-त्रय से वर्धापित करें-उसे ज्ञान, दर्शन और चारित्र के प्रशस्त मार्ग पर और आगे बढ़ायें। ७. नवोदित युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ जी स्तवना के द्वारा श्लाघ्य होते हुए सदा दर्शनीय दूज के चंद्रमा की भांति नित्य विकास करते रहें। ८. मैं (मुनि नथमल बागोर) श्री युवाचार्य महाप्रज्ञ के प्रति आह्लाद से पूरित यह बधाई-पत्र भेज रहा हूं। खण्ड ४, अंक ७-८ ३७५
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy