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१. युवाचार्य पद का निर्वाचन सुनकर हम मुनिजन बहुत प्रमुदित हुए। यह समाचार वस्तुतः हमारे लिए आनन्दकारी, मङ्गलमय, कल्याणजन्य, हर्षोत्फुल्ल, अमृतरस से प्रपूरित और अपने आपके लिए आत्मतोष का विषय था। ऐसी सुन्दर नियुक्ति के लिए किन-किन व्यक्तियों ने आचार्य श्री तुलसी की सराहना नहीं की अर्थात् सबने की।
२. जिन-जिन व्यक्तियों ने प्रत्यक्षद्रष्टा बनकर राजलदेसर की पुण्यभूमि पर उस भव्य दृश्य को देखा उन सबका मन पुलकन से भरा हुआ था। जब उन्होंने अपने ही मुख से वहाँ के हृदयद्रावक भव्यवृतान्त को सुनाया तब उसे सुनने पर हम मुनिजन इतने हर्ष स्निग्ध हो गए कि उसे वाणी में व्यक्त करना असंभव है।
३. संसार-समुद्र से तैरने के इच्छुक महापुरुष श्रीमद् भिक्षु स्वामी सौभाग्य से तेरापंथ धर्मसंघ के भाग्य विधाता बने । उन स्वयं मर्यादापुरुष ने ही समय के अनुकूल अपनी दूरदर्शिता से अपने संघ में एक आचार्य के होने का प्रावधान किया। आज उसी सुपरम्परा के कारण आचार्य श्री तुलसी ने पूर्णरूपेण प्रतिष्ठित उस सुविधा का उपभोग किया जिससे वे युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का निर्वाचन कर सकें।
४. विरासत से संप्राप्त उस सुविधा के कारण ही आचार्यवर श्री तुलसी ने ऐसे कठिन कल्पनातीत आवश्यक कार्य को कर दिखाया जिस कार्य के होने पर धन्य-धन्य के जयनारों से शेष सब स्वर (ऊहापोह अटकलबाजियाँ) स्वतः फीके पड़ गए । अशेष हो गए।
५. युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ जी बड़ी उम्र में है-जो लोग ऐसा चिन्तन करते हैं उन्हें भगवान महावीर के गणधर सुधर्मा स्वामी का चिन्तन करना चाहिए, जो ८० वर्ष की आयु में भगवान के उत्तराधिकारी बने । यह सत्य है कि दूरदृष्टि से किया हुआ कार्य आचार्य के लिए प्रशस्त होता है।
६. भारमुक्त होने पर भी आप मारयुक्त हैं---इस युगल धर्म का आश्रय स्याद्वाद के सिद्धान्त का प्रतिपादन है। उस सिद्धान्त के प्रतिबोध के लिए आप स्वयं दृष्टान्त बन गए हैं।
७. मैं [मुनि नथमल बागोर] आचार्यवर के लिए कुशलक्षेमपूर्वक श्री चरणों में अपना अभिवादन निवेदित करता हूँ। प्रभो ! आप चिरकाल तक सानन्द और सुखपूर्वक विचरण करते रहें।
८. आपके सुशिष्य मुनि सोहनलाल और मुनि नगराज-दोनों ही सविधि मस्तक झुकाकर श्री चरणों में वन्दना करते हैं और आप से सविनय कुशलक्षेम पूछते हैं।
६. मैं [मुनि नथमल बागोर] सम्यक् प्रकार से आचार्यवर के श्री चरणों में परम आह्लादकारी यह बधाई पत्र भेज रहा हूँ।
खण्ड ४. अंक ७-८