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________________ प्रश्न- आपके मानस में तेरापंथ धर्मसंघ के विकास के लिए क्या परिकल्पना है । उत्तर-बचपन से ही मेरा एक चिंतन रहा कि जिस धर्मसंघ में हम हैं, वह धर्मसंघ शक्ति शाली बने । दुर्बल धर्मसंघ में रहना हमें पसंद नहीं है, मुझे बिलकुल पसंद नहीं है। जो व्यक्ति स्वयं शक्तिशाली होना चाहता है और संघ को शक्तिशाली देखना चाहता है, वह कभी दुर्बलता को पसंद नहीं करता। तो सबसे पहले मेरे मन में कल्पना थी कि हमारा धर्मसंघ शक्तिशाली बने और शक्ति के जितने स्रोत हैं, वे सारे उद्घाटित हों । मैं मानता हूं कि धर्मसंघ में शक्ति का सबसे बड़ा स्रोत है अध्यात्म-चेतना का जागरण । अध्यात्म-चेतना जागृत होती है, तो संघ बहुत शक्तिशाली बनता है। मैं कुण्ड को या खड्डे को पसंद नहीं करता, कुए को पसंद करता हूं। जिसमें पानी बाहर से डाला जाथे। बहुत सीमित बात होती है। कुए में स्रोत फूटता है, जिससे कुए का पानी असीम होता है। कुण्ड में पानी डाला हुआ ससीम होता है, ये बात मुझे पसंद नहीं। मुझे यह बात पसंद है कि ऐसा स्रोत फूटे जिससे अनन्त जल निकलता ही चला जाए। मैं मानता हूं कि अध्यात्म-चेतना का जागरण एक ऐसे कुए को खोदना है, जिसमें शक्ति का स्रोत फूट जाए और शक्ति का अनंत प्रवाह उसमें निकलता रहे। मैं मेरे धर्मसंघ को उस शक्ति से सम्पन्न देखना चाहता हूं, जिसमें शक्ति का स्रोत फूट जाए। मुझे विश्वास है कि आचार्यवर के नेतृत्व में ऐसा संभव हो सकेगा । मैं चाहता हूं कि आचार्यवर हमें दीर्घकाल तक अपनी छत्रछाया दें और वे देखें कि उनका एक शिष्य अपने संघ को अतीन्द्रिय चेतना-जागरण के लक्ष्य तक पहुंचाने में निमित्त बना। प्रश्न- समाज, राष्ट्र और विश्व की समस्याओं के समाधान में आपका धर्मसंघ किस प्रकार उपयोगी बन सकता है ? उत्तर-संसार की मूलभूत समस्या क्या है, जो सारी समस्याओं को जन्म दे रही है ? मुझे लगता है-अपने आपकी विस्मृति । व्यक्ति अपने आपको भूल रहा है और दूसरों को सुधारना चाहता है। दूसरों का भला करने से पूर्व व्यक्ति अपने जीवन का निर्माण करे । यदि व्यक्ति के जीवन का निर्माण होगा तो विश्व को सुधरने में कोई समय नहीं लगेगा । संसार में विचित्र चल रहा है कि प्रत्येक व्यक्ति दूसरे की चिंता से चिंतित है; किंतु अपनी चिंता किसी को नहीं है। आध्यात्मिक चेतना के जागरण का सबसे पहला सूत्र होगा व्यक्ति चौबीस घण्टों में कम से कम एक घण्टा अपने लिये निकाले, उसमें दूसरों की कोई चिन्ता न करे। वह अपने को देखे, संवारे, निर्मित करे । यदि ऐसा होता है तो हम विश्व की समस्या का समाधान देने में मूल बात को पकड़ पायेंगे। जिसको पकड़े बिना सुलझाई जाने वाली समस्याएं उलझन बन जाती हैं। साम्यवादी देश का नागरिक जैसे पोपपाल प्रतिष्ठित पद पर निर्वाचित हुए। उन्होंने जिन नीतियों की घोषणा की उनका स्वागत हुआ । एकतन्त्रीय संघ-प्रणाली से आप भी निर्वाचित हुए हैं। आप दोनों को अलग-अलग धर्म-परम्परा का नेतृत्व मिला । आपकी और उनकी किन-किन प्रणालियों में समानता की कल्पना की जा सकती है ? तुलसी प्रज्ञा
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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