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मुनिश्री नथमलजी को बहुमुखी योग्यता का समुचित
बहुमान
रतिलाल भाई
जो व्यक्ति सत्य की खोज कर जीवन को सत्यमय, धर्ममय बनाने के लिए उतावला हो जाता है, जिसको यह रंग चढ़ जाता है, उसको दुनियां के सभी राग-रंग फीके लगते हैं और वह अपने आत्मभाव के रंग को और अधिक गहरा बनाने के लिए वैराग्य की शरण में जाता है। ऐसी स्थिति में वह तप, त्याग, संयम और तितिक्षा को अपना जीवन साथी बनाने के लिए नहीं हिचकता । जब ऐसा भाग्योदय जागृत हो जाता है, तब उसको संसार के दुःख नं दुःखरूप और न तीव्र ही लगते हैं। इसके विपरीत सांसारिक सुखोपभोग और आनन्द उसे उपाधिरूप और विघ्नकारक प्रतीत होते हैं। ऐसी कष्टप्रद जीवन-साधना को आनन्दमय बनाने के लिए वह दिव्य रसायन का आलंबन लेता है। वह रसायन है सत्य के विविध पक्षों के स्वरूप की सही जानकारी करने की उत्कट अभीप्सा। ऐसा साधक अपने मूलस्वरूप को, जगत् के स्वरूप को और परम तत्त्वरूप परमात्मा के स्वरूप को प्राप्त करने और जीवन को विमल बनाने के लिए उत्कट अभीप्सा को जागृत करता है।
.. तेरापंथ धर्मसंघ के मुनि नथमलजी (अब युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ) शील और प्रज्ञा अर्थात् ज्ञान और क्रिया के समान प्रकर्ष से सुशोभित हैं । वे सत्य की खोज द्वारा आत्मा की गवेषणा करने वाले एक श्रमण-संत हैं । उन्होंने श्रमण-धर्म की अन्तर्मुख और आत्मलक्षीमोक्षलक्षी अप्रमत्त साधना के द्वारा जो बहुमुखी योग्यता प्राप्त की है, उससे प्रेरित और प्रभावित होकर तेरापंथ के नौवें आचार्य श्री तुलसी जी ने गत नवम्बर मास में उनको 'महाप्रज्ञ' की उपाधि से सम्मानित किया। अभी-अभी (३-२-१९७६) आपने अपने उत्तराधिकारी के रूप में मुनि श्री नथमलजी का मनोनयन कर उनकी योग्यता का संघ में जो सन्मान-बहुमान किया है, वह एक सुयोग्य, ज्ञानी और गुणवान व्यक्ति के व्यक्तित्व के अनुरूप बहुमान के रूप में स्मृति-पटल पर अंकित रहने योग्य हैं। तेरापंथ धर्मसंघ तथा आचार्य श्री तुलसी से ऐसे विरल सम्मान को प्राप्त कर मुनि श्री नथमलजी अत्यधिक धन्यवाद और अभिनन्दन के पात्र बने हैं। - किसी व्यक्ति को कोई उपाधि या पद प्राप्त हो और उसके विषय में कुछ लिखा खण्ड ४, अंक ७-८
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