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________________ मुनि श्री नथमलजी पूज्य आचार्य श्री के इंगित-आकारों को समझते हैं। मैं यह कहं तो अत्युक्ति नहीं होगी कि मुनि श्री आचार्य श्री तुलसी के भावों के भाष्यकार हैं। मुनि श्री एक महान् दार्शनिक विद्वान् संत हैं, जो आगमों की गुत्थियों को सुलझाने में दक्ष हैं। इसी कारण पूज्य गुरुदेव ने कुछ समय पूर्व उन्हें "महाप्रज्ञ" की उपाधि से विभूषित किया था। मैं बीमार होने के कारण राजलदेसर मर्यादा महोत्सव पर जा नहीं सका। श्रीमान् राणमलजी जीरावाला का तार आया कि मुनि श्री नथमलजी युवाचार्य घोषित किये गये हैं। हृदय प्रसन्नता से गद्गद हो गया। उस समय की हृदय विभोरता शब्दों में नहीं बांधी जा सकती । मैंने इस शुभ समाचार को समाज के महानुभावों के पास भेजा और मेरे पास बहुत से लोग प्रसन्नता प्रकट करने के लिए आये । मैंने हर्ष एवं अह्लाद का लम्बा तार राजलदेसर देने के लिए लिखा, उसमें पूज्य गुरुदेव से सविनय अर्ज भी की कि युवाचार्य महाराज का नाम पलट देवें । तार लिख चुका था, लोगों ने देखा तो कहा कि तार बहुत लम्बा है और नाम पलटने की अर्ज करना श्रावकों के लिए उचित नहीं। तब मैंने केवल हर्ष एवं प्रसन्नता का तार दिया। उसके कुछ समय बाद लाडनूं से आए यात्रियों द्वारा मालूम हुआ कि युवाचार्य जी महाराज का नाम पलट दिया गया है। अब से युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ के नाम से सम्बोधित होंगे । मुझे इस बात की अत्यन्त खुशी हई । खासकर कि पूज्य गुरुदेव ने दूर होते हुए भी मेरे हृदय के भाव जान लिये । . युवाचार्य श्री एक महान् ज्ञानवान् दार्शनिक संत हैं। गुरु ने क्या किया, शिष्य ने क्या किया, यह विचार मुनि श्री (वर्तमान युवाचार्य) के मन में कभी नहीं आया । जो भेद रेखा थी आचार्य और शिष्य की, युवाचार्य होने के बाद वह भेद रेखा भी नहीं रही। दोनों अभेद रूप हो गये । .. . जब पूज्य गुरुदेव का ध्यान आगम कार्य की ओर गया तो. युवाचार्य महाराज इस कार्य में ऐसी निष्ठा के साथ जुड़े कि थोड़े समय में कई आगमों के सम्पादन का श्रम-साध्य कार्य निष्पक्षता से किया और आगे भी कर रहे हैं । जब आचार्य श्री का ध्यान, ध्यान की ओर गया तो युवाचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने सर्वप्रथम ध्यान के प्रयोग स्वयं पर किए और जब उनमें निष्णात हुए तो जैन पद्धति का शास्त्रोचित्त "प्रेक्षा ध्यान" का विकास किया । जैनजनेतरों को उस ध्यान की ओर आकर्षित ही नहीं किया अपितु ध्यान की सही परिपाटी बतलाई। युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ एक कुशल सलाहकार हैं । वे समय-समय पर पूज्य गुरुदेव को आवश्यक सलाह देते रहते हैं। युवाचार्य महाप्रज्ञ जैन दर्शन के महान् उद्भट विद्वान् हैं। जिस विषय पर उनकी कलम चल पड़ी उस विषय को उन्होंने बड़ी कुशलता से पाठकों के सामने रखा है । वे संस्कृत प्राकृत एवं हिन्दी के महान् विद्वान् हैं । साथ-साथ अंग्रेजी में भी गति की है । आपने प्राकृत, संस्कृत एवं हिन्दी में अनेक पुस्तकें लिखी हैं जो साहित्यिक एवं आध्यात्मिक जगत् के लिए एक अमूल्य देन है । युवाचार्य श्री की कई पुस्तकों का अंग्रेजी अनुवाद भी हो चुका है। भगवान् महावीर एवं गौतम गणधर के समान पूज्य आचार्य श्री तुलसी एवं युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ की जोड़ी है । मैं आचार्य देव का एवं युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ का हार्दिक अभिनन्दन करता हुआ यह कामना करता हूं कि यह जोड़ी नित्य बनी रहे और संघ ही नहीं समस्त जन मानस को उत्तरोत्तर विकासोन्मुख बनाते रहें और संसार का पथ-प्रदर्शन करते रहें। ३६० ... तुलसी प्रज्ञा
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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