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अद्वैत भी, द्वैत भी, एकादश रूप भी !
गोपीचंद चोपड़ा
वह ऐतिहासिक दिवस
प्रतिदिन नानाविध घटनाए घटित होती रहती हैं, किन्तु महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाए कई दशकों या शताब्दियों के अन्तराल में ही हुआ करती हैं। ऐसी ही एक विशेष महत्त्वपूर्ण घटना दिनांक ३-२-७६ के दिन घटित हुई, जो तेरापंथ के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखित रहेगी।
माघ महोत्सव (माघ शुक्ला सप्तमी सं० २०३५ वि०) का पावन दिवस राजलदेसर में गुरुदेव के सान्निध्य में कई चरणों में मनाया जा रहा था। दूसरे चरण के प्रारंभ में प्रसन्नवन्दन श्रद्धेय आचार्य प्रवर ने परम आह्लाद एवं परमानन्दानुभूति के साथ जलदगंभ र स्वर में महाप्रज्ञ मुनि श्री नथमल जी को तेरापंथ संघ के युवाचार्य और अपने उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा की। इस घोषणा ने चतुर्विध संघ को सहसा आनन्द विभोर कर दिया। प्रकृति ने भी इसका पूर्णरूपेण समर्थन किया। मुनि श्री नथमल जी अनासक्त, निरभिमानी, वीतरागता के साधक, साधना व ध्यान के पथ-प्रदर्शक तथा ज्ञान-ज्योति के उपासक तो हैं ही, किन्तु उनकी सर्वाधिक योग्यता आचार्य-चरणों के प्रति समर्पण भावना है । गुरुदेव ने मुनि श्री की समर्पण भावना की भूरि-भूरि प्रशंसा की। समग्र समाज आकुल था गुरुवर एवं युवाचार्य महाराज का अभिनन्दन करने के लिए, किन्तु सभी को मौका मिलना संभव नहीं था, अतः मैंने तो मूक श्रद्धांजलि अर्पण कर ही संतोष किया।
यथा गुरु, तथा शिष्य
हमने आचार्य प्रवर को एक बार नहीं अनेक बार देखा है कि वे यथा अवसर "वज्रादपि कठोराणि मदूनि कुसुमापि" रह कर शासन की "सारणा-वारणा" करते आ रहे हैं । युवाचार्य जी महाराज में मृदुता का गुण अपेक्षाकृत अधिक है।
श्रद्धय मंत्री मुनिराज (मुनि श्री मगनलाल जी महाराज) के महाप्रयाण के बाद सेवाभावी मुनि श्री चम्पालाल जी (भाईजी महाराज) उनके रिक्त स्थान की पूर्ति यथासंभव ३५६
तुलसी प्रज्ञा