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________________ गंगा का विपुल जल बह जायेगा । इसलिए सम्पूर्ण समाज के लिए आचार्य श्री तुलसी जी ने एक अमूल्य अवसर उपस्थित कर दिया है कि जितना वे अपने आचार्यत्व-काल में नहीं कर पाये, वह इस मनीषी सन्त से करवा लिया जाय । समाज साम्प्रदायिक नींद से या उन्माद से जाग सके और मुनि श्री जगा दें, तो देखते-देखते नव निर्माण की सम्पूर्ण क्रांति घटित हो सकती है। व्यक्ति यहाँ गौण है । जो व्यक्तित्व समष्टिगत हो जाता है, विराट क्षितिज' जिसको अपना लेता है, उससे निरा व्यक्ति क्या अपेक्षा करे ? आकाँक्षा यही है कि उनके स्नेहवात्सल्य पूर्ण ज्ञानकणों का हलका-सा स्पर्श भी परमसुख देने वाला बने ! अपनी आन्तरिक वन्दना के ये दो शब्द उनके चरणों में अर्पित करने का सौभाग्य मुझे मिला, यह परम आह्लाद का विषय है । विवेह के साधक विक्रम संवत २०२२ की घटना है । युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ जी हर मंगलवार को मौन किया करते थे । एक दिन आपके मंगलवार का मौन था और उस दिन लंबा विहार भी। आपके पैर में पीड़ा हो गई । लेकिन आपने उस दिन किसी को संकेत तक नहीं किया । दूसरे दिन प्रसंगवश बात चलने पर आपने दर्द का जिक्र किया तब मैंने निवेदन किया-आप थोड़ा संकेत कर देते तो मैं पाँव दबा देता। मेरा कथन सुन आप मुस्करा गये । यह थी आपकी विदेह की साधना । विदेह का साधक शरीर और आत्मा की भिन्नता का अनुभव करता हुआ शरीर पर आने वाले हर कष्ट को समभाव से सहन करता है और आत्मानन्द का अनुभव करता है। -मुनि विमल कुमार खण्ड ४, अंक ७-८ ३५५
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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