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________________ इस दृष्टि से सबसे पहली बात है स्वार्थ का विसर्जन । कोई भी व्यक्ति या समाज तब तक विशिष्ट नहीं बन सकता, जब तक उसमें स्वार्थ-चेतना से मुक्त होने का संकल्प दृढ़ नहीं हो जाता । व्यक्ति की स्वार्थ-चेतना उसे खानपान जैसी छोटी बातों में उलझा देती है तो कभी किसी बड़ी बात को लेकर उत्पात मच जाता है । साध्वियों से मेरी दूसरी अपेक्षा है-दीर्घकालीन चिन्तन की क्षमता का विकास । तत्काल जो कुछ प्राप्त होता है, उस पर तात्कालिक प्रतिक्रिया दीर्घकालीन हितों के पक्ष में नहीं होती। इसलिए तत्कालीन प्रतिक्रिया को सुरक्षित रखते हुए समय पर ही उस सम्बन्ध में निर्णय लेना उचित है। तीसरी बात है शिक्षा का गहरा अभ्यास । अध्ययन का धरातल ठोस न हो तो पल्लवग्राही विद्वता से व्यक्ति न अपने आपको उपलब्ध कर सकता है और न ही शिक्षा के क्षेत्र में नए आयामों का उद्घाटन कर पाता है। "सबसे अधिक महत्वपूर्ण और आवश्यक बात है अनुप्रेक्षा और ध्यान का अभ्यास, वह भी वृत्तियों को रूपान्तरित करने के उद्देश्य से । इन सब बातों के प्रति साध्वी-समाज जागरूक रहा तो वह वर्तमान की अपेक्षा अधिक प्रबुद्ध और गतिशील हो सकता है।" साध्वियों के सम्बन्ध में मेरी कुछ और भी जिज्ञासाएं थीं, पर एक साथ सब कुछ जानने की अभीप्सा भी तो परिपूर्ण जानकारी में बाधा बन जाती है। जीवन को पूरी तरह जीने के लिए दीर्घकालीन धृति की अपेक्षा होती है, वैसे ही किसी भी विषय को समग्रता से समझने के लिए भी पर्याप्त समय की अपेक्षा रहती है। वैसे युवाचार्यश्री का व्यक्तित्व जानापहचाना है । हजारों-हजारों लोगों की सहज श्रद्धा आपको प्राप्त है। आचार्यवर का मार्गदर्शन युवाचार्यश्री के लिए प्रकाशदीप का काम करे तथा युवाचार्यश्री का भविष्य धर्मसंघ तथा संपूर्ण मानव-जाति के उज्ज्वल भविष्य का दर्पण बनकर प्रस्तुत हो, इसी विश्वास के साथ मैं अपने अन्तःकरण की समस्त कोमल भावनाओं से आचार्यवर और युवाचार्यश्री की मंगलमय दीर्घजीविता की कामना करती हूं। विष्णुगढ़ के प्रो सुरगे गुलाब तव चरणों में अर्पित श्रद्धा का सैलाबा -साध्वी आनंद श्री ३४८ तुलसी प्रज्ञा
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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