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________________ व्यक्ति-निर्माण की बात मेरे मन को बहुत भाई। मैं स्वयं भी ऐसा ही कुछ सोच रही थी, पर उसकी कोई प्रक्रिया मेरे सामने स्पष्ट नहीं थी । युवाचार्यश्री के द्वारा जब यह तथ्य मैंने सुना तो अपनी जिज्ञासा को रोक नहीं पाई और छूटते ही पूछ बैठी-आपका यह दर्शन और उसकी क्रियान्वति बहुत अच्छी बात है, किन्तु इसका तरीका क्या होगा ? "तरीका तो कुछ निर्धारित करना ही होगा ? वैसे हर कार्य की निष्पत्ति के लिए कुछ विशिष्ट परिस्थितियों का निर्माण जरूरी होता है। जीवन-निर्माण के दर्शन की क्रियान्वति का श्रीगणेश व्यक्तिगत साधना के लिए कम से कम एक घण्टा समय लगाने के संकल्प सं शुरू हो ही गया है । इसकी निष्पन्नता के आसार मैं आगामी दशक में देख रहा हूं। इतनी बड़ी योजना के क्रियान्वयन में दस वर्ष का समय कोई अधिक नहीं है । मुझे विश्वास है कि आचार्यवर का सफल मार्ग-दर्शन उपलब्ध होने पर यह काम और अधिक सरल हो जाएगा।" युवाचार्यश्री के इस अभिमत से सहमत होने पर भी मेरे मन का एक और सन्देह उभर कर सामने आया। उससे प्रेरित होकर मैंने पूछ ही लिया -साधना में एक घण्टा समय लगाने का संकल्प कई साधु-साध्वियों ने लिया है, पर क्या समय लगाने मात्र से हमारा लक्ष्य पूरा हो जाएगा? मुझे तो ऐसा लगता है कि जब तक वृत्तियों का रूपान्तरण नहीं होगा, व्यक्ति-निर्माण का स्वप्न भी मात्र स्वप्न बनकर रह जाएगा। इस सम्बन्ध में आपकी क्या राय है ? "केवल समय लगाने मात्र से वृत्ति परिवर्तन की बात से मैं भी सहमत नहीं हूं। एकदो घण्टे के समय में स्वयं को प्रशिक्षित करने की विधि हस्तगत हो जाए, यह जरूरी है। इसके लिए मैं सोचता हूं कि साधु-साध्वियों को प्रशिक्षण के लिए व्यवस्था और अवकाश दिया जाए, तो हमारा स्वप्न स्वप्न न रहकर यथार्थ बन जाएगा। इस स्वप्न को फलीभूत देख मुझे जो प्रसन्नता होगी, वह भी अनिर्वचनीय ही होगी। युवाचार्य के सपनों का साध्वीसमाज मैं केवल दो-चार बात पूछने के लिए गई थी, पर युवाचार्य श्री के उत्तरों ने मेरे मन में जिज्ञासा का ज्वार ला दिया। समय काफी हो चुका था। फिर भी मेरे प्रश्नों की बौछार जोर पकड़ती जा रही थी। आखिर आचार्यवर ने आगम-कार्य के लिए युवाचार्यश्री को याद किया, तो मैं बोली - एक प्रश्न और पूछ लूं ? आपकी स्वीकृति पाकर मैंने पूछाआपका साध्वी-समाज संख्या की दृष्टि से बहुत बड़ा है । संख्या के अनुपात से गुणात्मकता भी बढ़े, इस दृष्टि से आप साध्वीसमाज से क्या अपेक्षाएं रखते हैं तथा क्या विशेष निर्देश देना चाहते हैं ? दो क्षण आज्ञा-चक्र पर मन को केन्द्रित कर हाथ के हल्के से स्पर्श से उसे परिस्पन्दित कर आप बोले हमारा साध्वी-समाज निश्चित ही एक बड़ा समाज है। उसमें नई जिज्ञासाओं की स्फुरणा है । वह कुछ होने या बनने की चाह भी रखता है, पर इसके लिए उसे विशिष्ट संकल्पशक्ति का संचय करना होगा तथा तद्नुरूप अपने आपको ढालना होगा। खण्ड ४, अंक ७-८ ३४७
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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