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लिए बहुत जरूरी है । शिक्षा अनुशासन और अध्यात्म, इन तीनों दिशाओं में हमें प्रगति करना है।
हम कठिनाइयों की ओर भी थोड़ा ध्यान दें। सबसे बड़ी कठिनाई है स्वास्थ्य की। यह बहुत चिन्त का प्रश्न आज हमारे सामने है । साधुओं में और विशेषकर साध्वियों में यह स्वास्थ्य का प्रश्न कुछ जटिल बनता जा रहा है । इससे बहुत बड़ी बाधाएं आती हैं । पहली बाधा तो स्वयं के जीवन में आती है । ज्ञान, दर्शन, चारित्र की जो आराधना होनी चाहिए, वह स्वास्थ्य के अभाव में नहीं हो पाती । दूसरी बाधा आती है संघीय प्रगति में । आचार्य श्री जहाँ भेजना चाहते हैं, वहाँ नहीं पहुंच पाते । जो कार्य करवाना चाहते हैं, वह नहीं हो पाता । यह बहुत बड़ा प्रश्न है । इस पर सबको विचार करना है । मैं प्रार्थना करता हूँ आचार्यप्रवर से कि इस पर भी ध्यान दें और कुछ ऐसे रास्ते खोजें जिससे साधु-साध्वीसमुदाय का स्वास्थ्य ठीक हो सके। मानसिक स्वास्थ्य काफी अच्छा है। आचार्य प्रवर ने प्रायः सभी साधुओं को अपने पास बुलाया और उनके स्वास्थ्य आदि के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की। मैंने देखा कि साधु बहुत उल्लिसित थे। इस बार मानसिक स्वास्थ्य का आचार्य श्री ने बहुत सुन्दर प्रयोग किया।
मैं एक बार पुन: आचार्य श्री के चरणों में एक प्रार्थना प्रस्तुत करता हूं--पूज्य गुरुदेव ! यह आत्मा का अद्वैत सदा बना रहे और आपका मार्ग-दर्शन मुझे मिलता रहे । मैं अपने जीवन के इस दृढ़ संकल्प को फिर दोहराता हूँ कि आपका जो भी इगित होगा, वह मेरे लिए बड़े से बड़ा व्रत होगा और उस व्रत में सदा मैं अपने जीवन को खपाता रहूंगा।"
अलौकिक चमत्कार युवाचार्य के नाम की घोषणा के तत्काल बाद ही एक चमत्कार घटा । मंच पर लगे शामियानों को छोड़कर सारे पण्डाल के शामियाने बीच में से गुब्बारे की भांति ऊपर उठे । बल्लियां ऊपर उठी। बल्लियों को थामने वाले ऊपर उठे। पण्डाल के बाहर न तूफान न हवा । सारा वातावरण शान्त, सौम्य और सुखद । जिस प्रकार वह ऊपर उठा उसी प्रकार धीरे-धीरे वह नीचे आकर यथास्थान जम गया । यह क्यों हुआ? क्या था ? ये प्रश्न अनुत्तरित ही रहे । कुछ लोगों ने इसे दैविक चमत्कार माना।
खण्ड ४, अंक ७-८