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आचार्य प्रवर का शुभाशीर्वाद
नथमल-नामगं सीसं, महापण्णं समप्पियं । आयरियो तुलसी हं, उत्तराहिगार मप्पेमि ।। ।।
मैं आचार्य तुलसी अपने महाप्रज्ञ और समर्पित शिष्य मुनि नथमल को अपना उत्तराधिकार सौंपता हूं।
जाणणं दसणेणं य, पेहाझाणेण संतयं ।
विगासं कुणमाणो सो, चिरं अच्छउ सासणे ॥२॥ ज्ञान, दर्शन और प्रेक्षा-ध्यान के द्वारा सतत विकास करते हुए युवाचार्य महाप्रज्ञ धर्म-शासन में दीर्घजीविता प्राप्त करें।
सतो दंतो सुई दक्खो, ओयंसी सुपइट्टिओ।
गहीयनव्वदाइत्तो, चिरं अच्छउ सासणे ।।३।। शान्त, दान्त, शुचि, दक्ष, ओजस्वी और सुप्रतिष्ठित युवाचार्य महाप्रज्ञ अपने नए दायित्व को स्वीकार कर धर्म-शासन में दीर्घ-जीविता प्राप्त करें।
साहुणो साहुणीओ य, सावगा साविया तहा ।
सम्म आसासयंतो सो, चिरं अच्छउ सासणे ।।४।। साध-साध्वियों और श्रावक-श्राविकाओं को पूर्ण रूप से आश्वस्त करते हुए युवाचार्य महाप्रज्ञ धर्म-शासन में दीर्घ-जीविता प्राप्त करें।
संघे णवणवायामा, नवम्मेसा णवक्कमा।
णिच्चं उग्घाडयंतो सो चिरं अच्छउ सासणे ॥५॥ धर्मसंघ में सदा नए-नए आयामों, उन्मेषों और अभिक्रमों का उद्घाटन करते हुए युवाचार्य महाप्रज्ञ धर्म-शासन में दीर्घ-जीविता प्राप्त करें।
*आचार्य श्री तुलसी द्वारा अपने उत्तराधिकारी युवाचार्य श्री महाप्नज्ञ (पूर्वनाम-मुनि श्री नथमल) को पट्टाभिषेक के समय प्रदत्त आशीर्वाद ।
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तुलसी प्रज्ञा