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निभाने को । अब किन-किन का नाम लूं । मैं जिस किसी पर हाथ रख कर कहूँ कि तुम निभाओ, वही निभा सकता है। अब आप लोग आतुर हो रहे होंगे । मेरे समूचे जीवन का सबसे बड़ा निर्णय है। यह निर्णय समूचे संघ का निर्णय है । किसी साधु को कल ना नहीं है कि क्या होने वाला है आज ? यह पत्र (उत्तराधिकार) मेरे हाथ में है। इस पत्र को मैंने आज ही दिन के साढ़े ग्यारह बजे लिखा है । अब मैं अपने उत्तराधिकारी का नाम घोषित कर रहा हूँ।
____ आचार्य प्नवर ने आगे कहा, ''मैं आज तेरापन्थ धर्म संघ के ११५वे मर्यादा महोत्सव में अपने उत्तराधिकारी के रूप में महाप्रज्ञ मुनि नथमल को नियुक्त करता हूं।" बस, इतना सुनते ही आचार्य श्री तुलसी की जय जयकार से आकाश गुजित हो उठा। लो। थिरकने से लगे । खुशी का अपार समुद्र लहराने लगा।
आचार्य प्नवर ने आगे कहा-मैं चाहता हूँ कि युवाचार्य महाप्नज्ञ एक क्षण के लिए मेरे आसन पर बैठे। ये संकोच कर रहे हैं । यह कोई नया काम नहीं है । जयाचा ने ऐसा किया था । जयाचार्य ने किसी विशिष्ट साधु को अपने पास बिठाया था। मैं तो युवाचार्य को बिठा रहा हूँ। किन्तु ये उपचार पसन्द नहीं करते हैं। मुझे लगता है कि इनका पट्ट पर बैठना बड़ा मुश्किल हो जायगा । मैं यह बहुत अच्छा मानता हूँ। ऊपर बैठने मात्र से कोई बड़ा नहीं होता है, नीचे बैठने से कोई छोटा नहीं होता है। सब लोग अपने-अपने स्थान पर बैठे-बैठे इनका अभिवादन करें। (उपस्थित जन समुदाय हर्ष-विभोर होकर वन्दन करता है।)
मुझे बहुत प्रसन्नता है इस दायित्व को सौंप कर। तथापि मैं अपने को हल्का अनुभव नहीं कर रहा हूँ। दायित्व तो मैंने सौंप दिया, परन्तु मेरा भार तो मुझे वहन करना ही होगा । ये किसी दूसरे काम में संलग्न हैं । मैं बाधक बनना नहीं चाहता । मैं इनको आश्वासन देता हूँ कि तुम निश्चिन्त रह कर अपनी साधना को चलाओ । बाकी सब काम मैं सम्हालता रहूंगा। अभी मैं स्वयं सक्षम हूँ काम करने के लिए। हमारी साध्वी प्रमुखा ने कहा आप यह काम कर तो रहे हो, क्या आपको कार्य से राहत मिलेगी ? मुझे राहत नहीं मिलेगी और न मैं यह चाहता हूँ। इतना सुन्दर वातावरण देख कर मैं स्वयं हर्ष-विभोर हो रहा हूँ। धर्मसंघ के लिए एक अकल्पित काम हुआ है, जिससे धर्मसंघ की शोभा बढ़ेगी और इसका बहुमुखी विकास होगा। मैं अत्यन्त प्रसन्न मन से इनको आशीर्वाद देता हूँ कि इनके नेतृत्व में धर्मसंघ फूले-फले ।
मेरे जीवन का करणीय कार्य सम्पन्न हुआ। काम करने के बाद इतनी प्रसन्नता हुई कि कल रात को नींद भी निश्चितता की आई । मैंने अपना कार्य किया है । समूचा संघ प्रसन्न है।"
- आचार्य तुलसी
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तुलसी प्रज्ञा