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युवाचार्य का मनोनयन : एक ऐतिहासिक घोषणा
आचार्य तुलसी
[तेरापन्थ धर्म-संघ के राजलदेसर में आयोजित ११५वें मर्यादा महोत्सव (दि० ३ फरवरी, १९७६) के शुभावसर पर युग प्नधान आचार्य श्री तुलसी ने युग-निर्माण कारी घोषणा द्वारा चतुर्विध धर्म संघ को आत्मविभोर कर दिया। उन्होंने फरमाया-]
__ आज मुझे इस धर्म संघ का नेतृत्व और दायित्व निभाते ४३ वर्ष हो गए और मैंने अपने दायित्व को मनसा, वाचा, कर्मणा निभाया और निभाता रहूँगा। आज मेरी अवस्था ६५ वर्ष की हो गई है । आप देखते हैं कि हमारे धर्म-संघ के अब तक जितने आचार्य हुए हैं, एक को छोड़कर सभी आचार्यों ने इस उम्र से पहले-पहले अपना दायित्व औरों को सौंप दिया । मैं भी आज एक घोषणा करना चाहता हूँ । (सारी सभा में एक सन्नाटा)। एक नाम की घोषणा करना चाहता हूँ। (लोगों की उत्सुकता तीव्रतम हो गई)। कुछ लोगों में बेचैनी है, क्या ? ६५ वर्ष की उम्र है, अब तक उत्तराधिकार की कोई चर्चा नहीं है, कहीं माणकगणी की तरह बरतारा न बीत जाए । कुछ लोगों को यह चिन्ता है कि आचार्य श्री परेशानी में हैं। करना चाहते हैं, किन्तु कर नहीं सकते । कुछ लोग यह कहते हैं कि करें क्या, साधुओं में बड़ा भारी विरोध है, न जाने कब क्या हो जाय । ऐसी बातें पागलपन की उपज हैं, निरर्थक हैं और असत्य हैं। आज तक मेरे मन में इसके लिए कभी भी एक क्षण भी बेचैनी नहीं हुई है। इस बारे में कभी मैंने निर्णय लिया ही नहीं। एक दो बार मेरे मन में यह बात जरूर आई । आकस्मिक बीमारी आई। तब मैंने सोचा कि अकस्मात् कोई काम हो जावे तो क्या करना चाहिए। मैंने कोई चिन्तन भी किया और फिर उसे छोड़ दिया। मैं ठीक कह रहा हूँ । धर्मसंघ के सब साधु-साध्वी बैठे हैं । मैंने इस विषय में कभी चिन्ता नहीं की। मुझे लगता है, आज भी मेरे लिए सं० १६६३ वि० का साल है। मेरा उल्लास, मेरी प्रसन्नता में कोई कमी नहीं है। लेकिन आज मैं एक नाम घोषित करना चाहता हूँ। लोग चिन्तन कर रहे होंगे।
नाम पुराना है । भारतवर्ष में ही है, बाहर नहीं है । (लोगों का धैर्य विचलित हो रहा था। सब आचार्य श्री की ओर टकटकी बाँधे हुए थे।) मेरी दृष्टि में, मेरी आज्ञा में, मेरे चिन्तन और इगित पर चलने वाले साधु का नाम है। साधु सक्षम है मेरा दायित्व
खण्ड ४, अंक ७-८
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