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________________ साधु एक खुली किताब है, या कहें कि वह एक जीवन्त शास्त्र हैं, एक ऐसा शास्त्र, जिसमें चारित्र लिपि का उपयोग हुआ है, जिसके अक्षर-अक्षर, वर्ण-वर्ण से अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य प्रकट हो रहे हैं। कुल मिलाकर प्रस्तुत अङ्क बहुत ही सुन्दर बन पड़ा है, जो सम्पादक के कलाचातुर्य का निदर्शन है । आचार्य विद्यासागर जी के विभिन्न मुद्राओं में दिये गये चित्रों का संयोजन भी उत्तम है। इस अनुपम प्रस्तुति के लिये सम्पादक एवं प्रकाशक दोनों बधाई के पात्र हैं। डॉ० कमलेशकुमार जैन शिक्षा के सन्दर्भ में लेखक-मुनिश्री गणेशमल सम्पादक-मुनिश्री कन्हैयालाल प्रकाशक-श्री जैन श्वे० तेरापंथी मानव हितकारी संघ, राणावास पृष्ठ संख्या-५२; मूल्य-अनुल्लिखित मुनिजी गणेशमल जी संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती आदि विभिन्न भाषाओं के अधिकारी विद्वान् हैं । आपके द्वारा लिखी गई कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। समीक्ष्य कृति दोहों में निबद्ध एक लघु पुस्तिका है, जो भावों से भरपूर है। इसकी शैली अति मनोरम एवं शिक्षाप्रद है, इसके एक-एक दोहे में जीवनोपयोगी रत्नों का खजाना भरा है। समझदार नर है वही, करे सोचकर काम। करके पीछे सोचता, मूर्ख उसी का नाम । पुस्तिका में कुल ४ शीर्षक हैं-दो, तीन, चार और सात । इनमें शीर्षक के नामानुरूप अर्थात् दो-दो, तीन-तीन, चार-चार और सात-सात संख्या वाली प्रसिद्ध बातों का उल्लेख किया गया है। पुस्तिका बच्चों को कण्ठस्थ कराने योग्य है। -डॉ० कमलेशकुमार जैन श्री जिनदत्तसूरि मण्डल, दादावाड़ी अजमेर के प्रकाशन (उक्त प्रकाशन से निम्न पाँच पुस्तकें भेंट स्वरूप प्राप्त हुई हैं) १. धर्म और संसार का स्वरूप; पृ० २४+१५८, सन् १९७०, मूल्य रु० २.०० । २. जीवन दर्शन (अहिंसा); पृ० १६+६८, चतुर्थ आवृत्ति, मूल्य रु० २.५० । ३. Rational Religion; पृ० २४+ ६२, द्वितीयावृत्ति, मूल्य रु० २.५० । खण्ड ४, अंक ७-८ ५०१
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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