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आचार्य प्रवचन*
अनासक्ति
आसक्ति और कर्म के आधार से पुरुष चार प्रकार के होते हैं - १. कुछ पुरुष आसक्ति छोड़ देते हैं, पर कर्म को नहीं छोड़ते । २. कुछ पुरुष कर्म को छोड़ देते हैं, पर आसक्ति को नहीं छोड़ते । ३. कुछ पुरुष आसक्ति और कर्म दोनों को छोड़ देते हैं । ४. कुछ पुरुष न कर्म को छोड़ते हैं और न आसक्ति को ।
महान् व्यक्ति वह होता है, जो कर्म और आसक्ति दोनों से मुक्त हो जाता है। पर ऐसे व्यक्ति विरले ही होते हैं। सामान्य व्यक्ति दोनों को छोड़ने की क्षमता नहीं रखते । वे किसी एक से मुक्त होने का प्रयत्न करते हैं।
कार्य उतना ही करना चाहिए, जितनी क्षमता हो। क्षमता के बाहर किया गया कार्य या तो कार्य-सम्पूर्ति से पहले ही छोड़ दिया जाता है अथवा वह विघ्नोत्पादक बन जाता है। कोई भी कार्य क्यों न हो, प्रारम्भ करके पीछे हटना क्लीवता का सूचक है। किसी नीतिकार ने कहा है
प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचः, प्रारभ्य विघ्नविहता विरमन्ति मध्याः । विघ्नः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः,
प्रारभ्य चोत्तमजना न परित्यजन्ति ।। ___ कुछ व्यक्ति विघ्न के भय से किसी कार्य को प्रारम्भ ही नहीं करते। उन्हें प्रतिक्षण सन्देह बना रहता है कि कार्य प्रारम्भ किया और विघ्न उपस्थित हो गया, तो फिर क्या होगा ? मध्यम श्रेणी के व्यक्ति कार्य को प्रारम्भ तो कर देते हैं, पर ज्योंही कुछ कठिनाइयाँ
*आचार्य श्री तुलसी के प्रवचन से ।
खण्ड ४, अंक ७-८
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