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________________ रेलवे कर्मचारियों के द्वारा व्यवस्था में पूर्ण सहयोग प्रदान किया गया। प्रातःकाल महाप्रज्ञजी के द्वारा अपने जन्म स्थान 'टमकोर' की ओर तथा आचार्यप्रवर द्वारा हड़ियाल की ओर प्रस्थान किया गया । २१-२-७६ टमकोर स्थानीय जनता द्वारा महाप्रज्ञ जी का हार्दिक अभिनन्दन । साध्वियों द्वारा मंगलाचरण, मुनिश्री महेन्द्र कुमार जी एवं मुनि श्री श्रीचन्द जी द्वारा अभिनन्दन-वक्तव्य, तेरापंथ सभा व तेरापंथ युवक सभा द्वारा भाव प्रकट । युवाचार्य महाप्रज्ञ जी ने अपने उद्बोधन भाषण में बताया कि सब कुछ ज्योति पुज गुरुदेव की ही कृपा है कि मैं आज इस स्थिति में हूं। इस छोटे से गाँव का ग्रामीण बालक मुनि नथमल बना और मुनि नथमल से महाप्रज्ञ । सब कुछ गुरु-कृपा से ही हुआ है । अब इस गाँव का भी उत्तरदायित्व बढ़ गया है। आप लोगों का उत्तरदायित्व भी बढ़ गया है। अतः अब आप सभी को इसके लिए तैयार रहना है । आचार्य प्रवर की वाणी का प्रसार करना है । न केवल प्रसार अपितु उसका अनुसरण करना है। २२-२-७६ सादुलपुर __ आचार्यप्रवर का भव्य स्वागत हुआ। दर्शनीय था। राजस्थान के सार्वजनिक निर्माणमंत्री, स्थानीय राज्य उच्च अधिकारी एवं गणमान्य नागरिकों के द्वारा आचार्यप्रवर का भावभीना अनोखा अभिनन्दन किया गया। आचार्यप्रवर ने उमड़ते जनमानस को सम्बोधित करते हुए बताया कि "धर्म आपके साथ होगा तो प्रत्येक कार्य अच्छा होगा। धर्म के स्थान ही धर्म के केन्द्र हो यह मानेंगे तब तक आप धर्म के मर्म को नहीं समझेंगे । देखिये---हमारा शरीर है । इसमें कुछ केन्द्र हैं, किन्तु चेतना कहाँ नहीं है, समुचे शरीर में चेतना व्याप्त है । इसी प्रकार आपके जितने कार्य-स्थान हैं, वे ही आपके धर्म स्थान हैं । नीडम् के कार्यकर्ता द्वारा जैन विश्व भारती की प्रवृत्तियों को विस्तार से बताया गया। आचार्यश्री ने प्रातःकाल यहाँ से विशाल लम्बे जुलूस के साथ प्रस्थान किया। २३-२-७६ राजगढ़ आचार्यप्रवर के स्वागत-जुलूस ने नगर में प्रवेश किया । दर्शनीय जुलूस देखने सम्पूर्ण राजगढ़, सभी वर्ण व समाज के लोग उमड़ पड़े। जुलूस की वही व्यवस्था, अनुशासित जुलूस, निर्धारित नारे लगाते हुए लोग, पाँडाल में अपना-अपना स्थान ग्रहण किया। आचार्यप्रवर ने बताया हमारे युवाचार्य आने वाले हैं, अतः अभिनन्दन उसी समय रखा जाए। जनमेदिनी पुनः युवाचार्य की अगवानी के लिए दौड़ पड़ी, स्त्री-पुरुष बालक-बालिकायें, युवा-वृद्ध एक दूसरे से आगे जाने की होड़ में कि सबसे पहले मैं वन्दना करूँ। अपने युवाचार्य को शहर से ३ किलोमीटर पूर्व जाकर लोगों ने वन्दना की, वन्दना करने वाले थे तेरापंथ युवक परिषद के कार्यकर्ता, 'नीडम्' के प्रतिनिधि, महिलामण्डल की सदस्यायें और पुनः जुलूस अपने आप बढ़ता चला गया। खण्ड ४, अक ७-८ ४८७
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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