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________________ युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ के जयघोष से सम्पूर्ण वातावरण गूंजित हो उठा, लगभग २ कि. मी. तक लम्बा स्वागत जुलूस युवाचार्य के आगे-पीछे चलता रहा । आचार्यश्री का एवं युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ का सभी चारित्र-आत्माओं का हार्दिक अभिनन्दन किया गया। हजारों की संख्या में स्त्री-पुरुषों ने भाग लिया । २४-२-७६ राजगढ़ भागवती दीक्षा समारोह लगभग दस हजार स्त्री-पुरुषों ने भाग लिया । दीक्षार्थी बन्धु थे१. मुनिश्री निर्मल कुमार २६ वर्ष के राजगढ़ । २. मुनिश्री सम्भवकुमार २१ वर्ष के गंगाशहर । तथा प्रतिक्रमण का आदेश प्राप्त हुआ श्री सुबोधकुमार गधेया राजगढ़ निवासी को । भागवती दीक्षा कार्य जैन शास्त्रों की विधि से आचार्यप्रवर द्वारा सम्पन्न हुआ । दीक्षा देने से पूर्व उपस्थित दीक्षार्थी बन्धुओं के परिजनों, समाज व दर्शक बन्धुओं की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर दीक्षा कार्य का शुभारम्भ मंगलाचरण से हुआ । दीक्षार्थी युगल बन्धुओं का वर्तमान तक का परिचय दिया गया । तत्पश्चात् तपस्वी मुनिश्री सम्पतमल जी ने अपनी भावना आचार्यश्री के चरणों में इस प्रकार से प्रकट की- मेरा मुझ में कुछ नहीं जो कुछ है सो तौर । तेरा तुझको सौंपता क्या लागत है मौर ॥ युवाचार्य महाप्रज्ञ जी ने वर्तमान समाज व देश को तनाव मुक्त करने हेतु त्रिगुप्ती गुप्त ( कायोत्सर्ग, मौन व ध्यान ) साधना का परिचय कराया तथा मानसिक शांति का एक मात्र साधन प्रेक्षाध्यान को बताया । 'नीडम्' के प्रतिनिधि द्वारा इस अवसर पर जैन विश्व भारती की प्रवृत्तियों की पूर्ण जानकारी विस्तार से कराई गई एवं प्रेक्षाध्यान केन्द्रों की स्थापना हेतु योजना प्रस्तुत की गई । आचार्यप्रवर द्वारा अपने मङ्गल संदेश में मानव उत्थान हेतु सभी को प्रयत्न करने का आह्वान किया गया। हमें प्रयत्न मनसा, वाचा और कर्मणा तीनों प्रकार से सचेत होकर करना है | प्रेक्षाध्यान द्वारा अपने आपको जानो, स्वयं जगो, औरों को जगाओ, स्वयं उठो और औरों को भी उठाओ, स्वयं आगे बढ़ो औरों को भी आगे बढ़ाओ, उनके आगे बढ़ने में सहयोगी बनो । २४-२-७६ थान मठई रात्रिकालीन गोष्ठी में कैसट सुनवाये गये तथा आचार्यश्री का मङ्गल आशीर्वचन लोगों द्वारा प्राप्त किया गया । २५-२७६ भाकरा इस छोटे से गाँव में भी करीब तीन सौ स्त्री-पुरुष अपनी ग्रामीण वेश-भूषा में रुगुदेव के दर्शन को आये तथा उन्हें मुनिश्री चौथमल जी ने अपने भजनों एवं गीतों से भावविभोर किया । तत्पश्चात् ग्रामीणों की जिज्ञासा पूर्ति हेतु स्वयं गुरुदेव ने अपने मानवता वादी विचार सहज सरल भाषा में रक्खे, जिसका प्रभाव यह रहा कि तत्काल ५० व्यक्तियों तुलसी प्रज्ञा ४८८
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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