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________________ की प्रिय श्वेत वस्त्रावलि में शांत चित्त स्नेहमयी ज्योति वाली साध्वियाँ विराजित हैं; मानो शांति के देवता की सभा में साक्षात् शक्तिपुंज देवी-देवता अपने परम अराध्य ज्योतिपुंज की अराधना में संलग्न हो। सभी की दृष्टि अपने आराध्यदेव पर टिकी हुई है। आज्ञा के इन्तजार में । सन्तों के आगे युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ जी एवं साध्वियों के आगे महश्रमणी है, मानो दल नायक विराजे हों। दर्शनार्थियों का तांता लगा हुआ है, विविध वेष-भूषा में बाल-वृद्ध, स्त्री-पुरुष पंक्तिबद्धता से आ रहे हैं, तथा वन्दना कर जहाँ भी स्थान मिल रहा है बैठ रहे हैं । एक ओर कुछ पुरुष सामायिक में सलग्न हैं तो दूसरी ओर स्त्रियाँ; हाँ पूरे पाण्डाल में इन्हीं दो दलों को अलग से स्थान मिल रहा है । अन्य सभी स्त्री-पुरुष अपने-अपने खेमे में रिक्त स्थान पर अपने आप बैठ रहे हैं। जहाँ आचार्यप्रवर वन्दना स्वीकार कर मंगल भावव्यक्त कर रहे हैं, वहाँ प्रकृति अपनी शीतल बयार से सभी को कम्पायमान कर रही है। अजीबगरीब है प्रकृति-खेल । कभी ठण्डी बयार के साथ नन्हीं-नन्हीं बोछार, तो कभी भयंकर दिलदहलाने वाली गर्जन मानो गुरुदेव पर एकाधिकार जमा रही है दर्शनार्थियों को दर्शनों से रोकने में संलग्न है। वर्षा हुई, दर्शनार्थी रुके । वर्षा रुकी दर्शनार्थी चले, यह आँख मिचौनी चलती ही रही। श्रावक-श्राविकायें भी दृढ़प्रतिज्ञ हैं, सभी चारित्र-आत्माओं के दर्शन छोड़ना नहीं चाहते हैं। हजारों की संख्या में स्त्री-पुरुषों ने आचार्यप्रवर के दर्शन कर प्रवचन का लाभ उठाया। सायंकालीन कार्यक्रम में युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का “आज के युग में धर्म का स्थान" प्रवचन हुआ, एवं आचार्यश्री का १७-२-७६ प्रातःकालीन प्रवचन--क्या धर्म से सब कुछ काम चल सकेगा ? विशेष आकर्षण के केन्द्र रहा है। चुरू नगर के सभी उच्चतम राज्याधिकारियों व नागरिकों द्वारा आचार्यप्रवर का स्वागत किया गया। इस अवसर पर जैन विश्वभारती के प्रतिनिधि के द्वारा विस्तार से प्रेक्षा, तुलसी प्रज्ञा एवं युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रवचन कैसट सैटों की जानकारी कराई गई। अनेक श्रावकों द्वारा मासिक पत्रिकाओं की सदस्यता ग्रहण की गई, तो अनेकों ने जैन विश्व भारती के बारे में जानकारी प्राप्त की। इन अवसरों पर महाप्रज्ञ जी के दिसम्बर ७८ शिविर के कैसट्स हर समय सुनवाये गये। २०-२-७६ दूधवाखारा . रेलवेस्टेशन छोटा परंतु महत्वपूर्ण स्थान था। सायंकाल शिविर मार्च ७८ के प्रश्नोतर एवं आचार्यश्री के प्रवचन की टेप सुनाकर कार्यक्रम का प्रारम्भ हुआ । आचार्यप्रवर ने कहा--विज्ञान का चमत्कार है । ऐसा लगता है महाप्रज्ञ की वह सारी बातचीत जो मार्च में की थी, वह साक्षात् अभी कर रहे हैं।" दर्शनार्थियों को उपदेश दिया गया। दूधवाखारा में संस्कार निर्माण समिति द्वारा प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। आचार्यप्रवर द्वारा व्यसन-मुक्ति की प्रेरणा स्थानीय श्रोताओं को दी गई। तीन सौ के करीब श्रोता उपस्थित थे। ४८६ तुलसी प्रज्ञा
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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