________________
अणुव्रत अनुशास्ता दिल्ली की ओर (दिनांक ६ फरवरी '७६ से ६ मार्च '७६)
- गौतम
जय हो ! जय हो ! मैत्री हो ! समता धर्म-समताधर्म । अपार जनसमूह के घोष दूरी पर सुनाई पड़ रहे थे तथा सभी लोग घोषों से आकृष्ट हुवे तथा कई कदम उस ओर दौड़ पड़े। जयघोष नजदीक आये तो पूर्ण घोष इस प्रकार थे.....
राष्ट्र के महान संत आचार्यश्री तुलसी की जय हो! जन जन में..." "मैत्री हो। महावीर ने क्या सिखलाया-समताधर्म-समताधर्म ! युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ की 'जय हो ! कैसे बदले जीवन धारा-प्रेक्षाध्यान साधना द्वारा । अणुव्रतों का यह संदेश–व्यसनमुक्त हो सारा देश ।
अनुशासित जुलूस चला आ रहा है । महिलायें, बालक-बालिकायें युवक स्वयं अपनीअपनी पंक्ति में चल रहे हैं तथा जय घोष कर रहे हैं। श्वेत साड़ी हरी किनार की, नंगे पाँव वाली युवतियाँ लय बद्धता से गाती हुई बढ़ रही हैं तो पूर्ण श्वेत वस्त्रों से सुशोभित अपने विशेष वेष में एक दल और आगे बढ़ रहा है। सभी की गर्दन झुक गई है। कोई बैठकर तो कोई खड़े-खड़े ही नमन कर रहा है। सबसे आगे वाली साध्वी का हाथ ऊपर उठा है। करुणामय दृष्टि, हल्की मुस्कान, तेजोमय प्रभावशाली व्यक्तित्व की धनी यह महिला धीरेधीरे आगे बढ़ती हुई सभी को आशीर्वाद दे रही है और इनके पीछे एक लम्बी सी कतार ऐसी ही साध्वियों की चली गई है, पता लगा आशीर्वाद देने वाली साध्वी प्रमुखा महाश्रमणी कनक प्रभा है, जिनकी प्रभा आज नारी उत्थान के कार्यक्रम में चारों ओर फैल रही है।
पंच रंगों का ध्वज लहराता हुआ गुजर रहा है । ध्वज के ठीक पीछे बाल मुनि वृन्द पंक्ति से गुजर रहे हैं, छोटे-बड़े और बड़े क्रमशः । टीक इनसे १०-१५ कदम की दूरी पर हैं साक्षात् ज्योति पुज, ऊँचा ललाट, दैदिप्यमान चेहरा, मध्यम काठी का मध्यम कद का एक देवतुल्य व्यक्ति । शांत चित्त, प्रफुल्लित मन और उल्लास लिये एक हाथ से आशीर्वाद तथा चित्ताकर्षण करने वाली दृष्टि से सभी को प्रसन्नता में हर्षोल्लासित
४८४
तुलसी प्रज्ञा