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________________ मुनिश्री अभयकुमार जी के मंगलाचरण से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ तथा श्री विजयसिंह तलेसरा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में जवेर जी डागल्या का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। -शा० वी० टी० एण्ड सन्स घण्टाघर, उदयपुर विवेकानन्द जयन्ती समारोह, दिल्ली दि० १४ जनवरी, १९७६ को शिक्षण साधना ओडिटोरियम में विवेकानन्द परिषद् के तत्वावधान में आयोजित समारोह में मुनिश्री रूपचन्द जी ने कहा कि महापुरुष किसी दायरे में आबद्ध नहीं होते। उनका जीवन और उपदेश सर्वजनहिताय होता है। भगवान् महावीर से पूछा गया--मुक्त कौन हो सकता है ? महावीर ने कहा-जो व्यक्ति सत्संकल्प के साथ विवेकपूर्वक साधना के पथ पर चल पड़ता है, वह मुक्त हो जाता है। विवेकानन्द नाम में जो दो शब्द "विवेक" और "आनन्द' हैं वे हमें प्रेरित करते हैं कि आनन्द की प्राप्ति तभी सम्भव है जब विवेक का जागरण हो।। इसी सभा में भारत के प्रधानमन्त्री श्री मोरारजी देसाई ने बोलते हुए बतलाया कि विवेकानन्द ने आध्यात्मिक क्रांति अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के अनुग्रह से की थी। गुरु के प्रति उनमें अगाध श्रद्धा और समर्पण का भाव था। गुरु शिष्य का सम्बन्ध ऐसा ही होना चाहिए। -प्रोमप्रकाश कौशिक दिल्ली प्रदेश अणुव्रत समिति जैन अध्ययन मण्डल, नई दिल्ली दि० २८ जनवरी, १९७६ को अणुव्रत विहार में “जैन दर्शन में कर्म तथा पुनर्जन्म की समस्याएं' विषय पर आयोजित संगोष्ठी में केलीफोर्निया विश्वविद्यालय में बौद्ध दर्शन के प्राध्यापक श्री पद्मनाभ एस० जैनी ने विभिन्न दर्शनों का तुलनात्मक विश्लेषण करते हुए कहा-जैन दर्शन में निगोद जीवों का जो वर्णन है, उससे लगता है कि विकासवाद का बहुत सुन्दर विश्लेषण जैन दर्शन में है। निगोद जीव की चेतना प्राक् संसार में क्रमशः विकसित होती हुई तिर्यञ्च, मनुष्य आदि योनियाँ पार करती हुई सिद्ध शिला तक जा सकती हैं। म.निश्री रूपनन्द जी ने अपने विद्वत्तापूर्ण भाषण में कहा--आत्मा, कर्म, निर्वाण आदि प्रश्न शाश्वत हैं। प्रत्येक दर्शन में इन विषयों पर विस्तृत वर्णन मिलता है, परन्तु इसके बावजूद कुछ प्रश्न अनुत्तरित हैं। विद्वद्गण निष्पक्ष दृष्टि से इस पर अनुसन्धान करें। संगोष्ठी में दिल्ली विश्वविद्यालय एवं अन्य शोध संस्थानों के करीब २५ विद्वानों ने भाग लिया। --स्वरूपचन्द्र जैन, कार्यक्रम निदेशक, जैन विश्व भारती खण्ड ४, अंक ७-८ ४७६
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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