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________________ नथमल जी को कला का अध्ययन करने को कहा । जैन दर्शन में कला की क्या उपयोगिता है आचार्यश्री ने आदेश दिया-तुम लोक कला मण्डल में नियमित अध्ययन करने जाया करो। मुनिश्री ने आचार्यप्रवर के आदेश को शिरोधार्य किया और वे आने लगे। मुनिश्री अपनी जिज्ञासाए प्रस्तुत करते । मैं उनका समाधान करने की कोशिश करता । मुनिश्री के उर्वर चिन्तन के सामने मैं नत था। मैंने एक दिन मुनिश्री से कहा-आप प्रश्न मुझे दे दें, कल समाधान करूंगा। क्योंकि मेरा अहं बोल रहा था। जैसे-तैसे दस दिन तो मैंने पार किये और ग्यारहवें दिन मेरी पोल खुल गई। मैं आचार्य प्रवर के पास पहुंचा और निवेदन किया---आपने मेरी यह परीक्षा क्यों ली ? आज से मैं उनका शिष्य हूं, वे मेरे गुरु हैं। आपने आगे कहा- महासंत, क्रांतिकारी विचारक, साधक और विवेकशील मनीषी हैं । अभी पिछले दिनों मैं रूस के प्रधानमंत्री माननीय श्री कोसीगिन के सम्मान में कठपुतली नृत्य प्रस्तुत करने दिल्ली पहुंचा । मुझे नहीं पता था आचार्यप्रवर दिल्ली में हैं । मैंने समाचार पत्रों में आचार्यप्रवर के स्वागत के समाचार पढ़े और मैं दौड़ा हुआ अणुव्रत विहार पहुंचा। मैं कुछ समय तक आचार्यप्रवर की सेवा में बैठा रहा। आचार्यप्रवर ने कहामहाप्रज्ञ जी के दर्शन करो। मैं गद्गद् था। एक आचार्य अपने शिष्य के प्रति इतना उदार हो सकता है ? महाप्रज्ञ जी से विचार विमर्श चल रहा था। उन्होंने कहा-अब तक मैंने जितना अणुव्रत के बारे में लिखा है अपर्याप्त है। अब मुझे नये सिरे से लिखना होगा। आपने आगे कहा--आप अनेक प्रकार की कठपुतलियों का निर्माण कर रहे हैं पर ध्यान योग की दृष्टि से भी कठपुतलियों का निर्माण होना चाहिए । जब तक हम ध्यान अतल गहराईयों में नहीं पहुंचेंगे तब तक हम यथार्थ से अनभिज्ञ रहेंगे। मुनिश्री की दूरगामी दृष्टि को देखकर मैं अवाक् था । मैं युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का शब्दों से नहीं यथार्थ के धरातल पर अभिनन्दन करता हूं। श्री तेजसिंह जी मेहता सुप्रसिद्ध एडवोकेट तथा जाने माने चिन्तक श्री तेजसिंह मेहता ने कहा--मेरा मुनि श्री नथमल जी से प्रत्यक्ष सम्पर्क तो नहीं रहा, पर मैं उनकी कृतियों का पाठक रहा हूं। मैंने मुनि श्री के साहित्य में पाया है उनके हर शब्द का अपना अलग अस्तित्व होता है। उनकी कुछ कृतियाँ तो श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर से भी बढ़ी-चढ़ी कहूं तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। आपने आगे कहा--जो व्यक्ति ध्यानी हो जाता है उसके सारे कार्य होश पूर्वक होते हैं। मुनि नथमल जी ध्यान-योगी हैं। उनकी प्रत्येक प्रवृत्ति योग-संचालित होगी। सचमुच में ध्यानी ही व्यावहारिक जगत में जी सकता है। ध्यानी जब आत्मस्थ होता है तभी सही दिशा में वह आगे बढ़ता है। आपने आगे कहा--भारत की धार्मिक जनता के लिए युवाचार्य श्री का चयन लाभकर होगा मुनिश्री के कृतित्व से न केवल तेरापंथ समाज ही लाभान्वित होगा बल्कि सारा धार्मिक जगत उनके कर्तृत्व से प्रभावित होगा । प्रेक्षा ध्यान के बारे में मैंने इन दिनों अनेकों विद्वानों से सुना है मेरी भी जिज्ञासा बढ़ी है मैं इसका गहराई से अनुशीलन करना चाहता हं। ध्यान में शास्त्रों की बात जीवन्त हो जाती है। मैं युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ के उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता हूं। खण्ड ४, अंक ७-८ ४७५
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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