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श्री जसवन्त सिंह की मेहता
जैन समाज के जाने माने नेता एडवोकेट श्री जसवन्तसिंह जी मेहता ने इतिहास की अविच्छिन्न कड़ियों को जोड़ते हुए कहा - भगवान महावीर के पश्चात् आचार्य परम्परा में पहले पट्टधर आर्य सुधर्मा स्वामी थे तथा दूसरे जम्बू स्वामी । जम्बू स्वामी के उत्तराधिकारी प्रभव स्वामी थे । प्रभव स्वामी सबल नेतृत्व के धनी थे, जब उन्होंने अपने पीछे नजर दौड़ाई तो हजारों साधु साध्वियों के परिवार में तथा लाखों अनुयायियों में अपने उत्तराधिकारी के योग्य कोई नजर नहीं आया । उन्होंने इतर समाजों में दृष्टि दौड़ाई । ज्ञान बल से जाना और पाया -- मेरे उत्तराधिकारी के रूप में स्वयंभव भट्ट उपयुक्त होंगे । उन्होंने अपने दो शिष्यों को समझाने के लिए भेजा। शिष्यों ने स्वयंभव को देखते ही दूर से कहा - "अहो कष्टमहो कष्टं, तत्वं न ज्ञायते परम् " स्वयंभव भट्ट ने जब यह वाक्य सुना वे चिंतन करने लगे । गहराई से समझने का प्रयत्न किया पर उसका सूत्र हाथ न लग सका । आखिर वे आचार्य प्रभव के पास पहुंचे । आचार्य प्रभव ने उन्हें प्रतिबोध दिया, शिष्य बनाया, आगमज्ञ किया और उत्तराधिकारी नियुक्त किया। यह ऐसी घटना है, यदि हम इस घटना के परिप्रेक्ष्य में देखें तो आचार्यश्री कितने शौभाग्यशाली हैं । शायद उन्हें कहीं नजर दौड़ाने की भी अपेक्षा नहीं हुई होगी। उन्होंने एक कोहिनूर निकाल कर समाज के सामने प्रस्तुत कर दिया । तेरापंथ समाज का संगठन अद्भुत है, अलबेला है । इस प्रकार का संगठन हमें कहीं भी देखने को नजर नहीं आता, चाहे वे धार्मिक संगठन हैं या सामाजिक अथवा राजनैतिक । खरतरगच्छ का एक आचार्य हो, यह चिन्तन वर्षों से चल रहा है, पर यथार्थता तक नहीं पहुंच पा रहे हैं । मुनिश्री नथमल जी के निर्वाचन से तेरापंथ समाज को ही नहीं समग्र जैन समाज को गौरव है ।
श्री रोशनलाल चौधरी
विद्या निकेतन माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री रोशनलाल चौधरी ने कहा – आज के ये दोनों सुयोग अद्भुत है । मुनिश्री सागरमल जी का शुभागमन तथा युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का अभिनन्दन । सब लोगों को इस बात का आश्चर्य होता है कि आचार्यश्री तुलसी ने किसी को बिना पूछे बिना जताये अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति कर डाली, पर वे भूल जाते हैं यह तेरापंथ धर्मसंघ है । इस धर्मसंघ में आचार्य का निर्णय सर्वोपरि होता है । कुछ व्यक्तियों ने मुझे पूछा- क्या आचार्यश्री तुलसी का निर्णय जनतंत्र युग में उपयुक्त माना जा सकता है ? वे भूल जाते हैं जनतंत्र का क्या मतलब होता है । जनतंत्र का तात्पर्य है सब व्यक्तियों का जिससे हित होता है, वही तो जनतंत्र है ।
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आपने आगे कहा- मुझे लगता है तेरापंथ की यह प्रणाली राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी स्वीकार की है । वहाँ पर भी मनोनीत करने का अधिकार है । माननीय गोलवलकर साहब (गुरुजी) के निर्णय को सबने एक स्वर से स्वीकार किया । आपने आगे कहा- - जब जब भी मैं आचार्यप्रवर की सेवा में समुपस्थित हुआ हूं, मुझे मुनिश्री नथमल जी के पास घंटों बैठने का अवसर मिलता रहा है । उन्होंने जिस प्रकार से अपनत्व दिया, उसे मैं शब्दों व्यक्त नहीं कर सकता । घर-परिवार से लेकर राजनीति और अध्यात्म तक की चर्चाएँ
तुलसी- प्रज्ञा
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