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________________ कोहिनूर बन कर जौहरियों के हाथों में है । श्री भाई जी महाराज की कला आज मुखरित हो उठी है। काश ! आज वे होते । आचार्यश्री तुलसी के बाद यह दूसरा व्यक्तित्व है, जो तेरापंथ धर्म-संघ का नेतृत्व संभाल रहा है। आपने आगे कहा-मुनिश्री नथमल जी का जीवन सर्वथा निर्विवाद रहा है आचार्यश्री तुलसी ने युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ का निर्वाचन कर सही अर्थ में सरस्वती का समादर किया है। आगम का समादर किया है । दर्शन को मूर्तरूप में अवतरित किया है। हम हृदय की अनन्यतम भावनाओं से उनके प्रति कृतज्ञ है । आपने आगे कहा--मुझे मुनिश्री नथमल जी को बहुत निकटता से देखने का अवसर मिला है। अनेकों आयामों में वे मुड़े हैं, और निखरे हैं। उनके अनेकों रूप हमारे सामने आये हैं । हर स्थान पर हमने उन्हें चिन्तनशील पाया है। वे रहस्यवादी हैं। चैतन्य के निकट पहुंचने वाली विभूतियों में है । हम उनका अभिनन्दन किन शब्दों में करें यहाँ आकर शब्द निशब्द हो जाते हैं। भाव-विभोर मानस उन्हें अंतर की आँखों से झाँकने लगता है। वे पारदर्शी हैं । उनके नेतृत्व को पा तेरापंथ धर्म-संघ निहाल हो उठा है। मुनिश्री विनयकुमार जी आलोक' मुनिश्री नथमल जी को हम अनेक रूपों में देख रहे हैं। उनका पहला रूप है दार्शनिक का, चिन्तक एवं विचारक का । दूसरा रूप विशुद्ध साहित्य सेवी का और भी अनेक रूपों में हम उन्हें बाँट सकते हैं पर मुझे उनका सबसे प्रभावित करने वाला जो रूप लगा वह है उनका आचार्यश्री के प्रति समर्पित भाव। आचार्यप्रवर ने भी मनोनयन के अवसर पर अपने प्रवचन में कहा था---'मुनि नथमल हमेशा से समर्पित रहा है।' सचमुच वे उतने ही समर्पित थे, जितना हर व्यक्ति अपने आपको कर नहीं सकता। फिर एक बौद्धिक और चिन्तक व्यक्ति का समर्पित होना अपने आप में विशेषता रखता है। ___ आगे आपने कहा- मुनिश्री नथमल जी की मिलन-सारिता अभूतपूर्व है। जब-जब भी मिलना हुआ है, उन्होंने ऐसा आत्मीयता का भाव दर्शाया जिससे सहज ही व्यक्ति अभिभूत हो जाता है। श्री देवीलाल जी सामर अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भारतीय लोक कला मण्डल के संस्थापक एवं निदेशक श्री देवीलाल सामर ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा—मुनिश्री नथमल जी से मेरा संबंध बहुत गहरा रहा है । अतीत में झाँकते हुए श्री सामर जी ने कहा-बीस वर्ष पूर्व मैं आचार्यश्री तुलसी से प्रभावित नहीं था तथा मन में कुछ संदेह भी थे। मेरे मन की बात आचार्यश्री के पास पहुंची। उन्होंने मुझे याद किया। मैं आपके चरणों में उपस्थित हुआ, पर प्रभावित नहीं हो सका । कई बार आने-जाने का क्रम बना। विक्रम सं० २०१६ में आचार्यप्रवर का चातुर्मास उदयपुर में हुआ। आचार्यप्रवर ने मुझे पुनः याद किया । मैं उपस्थित होता रहा मैंने एक रोज आचार्यश्री से निवेदन किया-रोज-रोज नहीं आऊंगा। आचार्यप्रवर ने कहारोज न सही रविवार-रविवार व्याख्यान सुनना। मैं व्याख्यान सुनने के लिए एक-दो-तीन रविवार आया और मैं प्रभावित होता गया। अब तो मैं नियमित आने लगा। आचार्यप्रवर ने मुझे मुनिश्री नथमल जी को सौंपा । एक दिन वार्तालाप के बीच आचार्यप्रवर ने मुनिश्री ४७४ तुलसी-प्रज्ञा
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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