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________________ आचारांग में एक सूत्र है-"उम्र बीत रही है यौवन बीत रहा है" यदि हमारी दृष्टि परिमार्जित एवं दूरगामी नहीं है हम इस सूत्र के रहस्य को नहीं जान सकते । मैं तो यह मानता हूं मुनि नथमल ही एक ऐसे हैं जो इस आगम का संपादन कर सकते हों, दूसरे के बल बूते का काम नहीं है । उनका तीसरा रूप है—ध्यान योगी। ____ डा० सोगानी ने गंगाशहर चातुर्मास की चर्चा करते हुए कहा-हम अनेक विद्वान गंगाशहर में आचार्यश्री तुलसी के सान्निध्य में समुपस्थित हुए। जैन विश्व-कोश की चर्चा हुई, बैठकें हुई। उन बैठकों में मुनि नथमल हमें नजर नहीं आए। जब-जब भी हम आचार्य श्री के पास उपस्थित होते थे तब-तब हमें मुनि नथमल आगे मिलते पर इस बार इसके विपरीत हो रहा था। मेरे मन में संदेह उत्पन्न हुआ। मैंने सोचा शायद इस बार मुनि नथमल जी कहीं अलग चातुर्मास कर रहे हैं। मैंने अपने साथियों से चर्चा की। किसी ने आचार्यश्री तुलसी से पूछा-मुनिश्री नथमल जी कहाँ हैं ? आचार्यप्रवर ने कहा- आजकल वे ध्यान की अतल गहराइयों में पहुंच रहे हैं। मन में जिज्ञासा हुई मुनिश्री से मिलना चाहिए। दलसुख भाई मालवाणिया, टांटिया जी तथा मैं तीनों समय निर्धारित कर मुनि नथमल जी के पास पहुंचे। मैंने देखते ही मुनिश्री से निवेदन किया--मुझे तो कुछ गड़बड़ नजर आती है । मुनिश्री चौंके और बोले-कैसे? मैंने कहा-अब आगमों को कौन पढ़ेगा? कौन दर्शन की नई देन देगा ? मुनिश्री ने तत्काल कहा-ध्यान योग का कार्य करता हुआ मैं उस कार्य को और बारीकी से कर सकूगा । मैं सुनकर अवाक् था। डा० सोगानी ने आगे कहा-युवाचार्य महाप्रज्ञ जी ने दर्शन से चल कर ध्यान तक की यात्रा सम्पन्न की है। महावीर ध्यान से चलकर दर्शन तक पहुंचे थे। महाप्रज्ञ जी ने महावीर से उल्टा क्रम अपनाया । वे समाज दृष्टि में भी पूर्ण सफल होंगे क्योंकि वे बुद्धि के स्तर से उठे और अनुभव तक पहुंचे हैं। अनेकों के मस्तिष्क में एक विचार फिर पैदा होता है-ध्यानयोगी संघ का नेतृत्व कैसे कर सकेगा ? हम फिर महावीर के युग में चलें, महावीर भी तो आत्म-समाधि से संघ में प्रविष्ट हुए थे। यदि महावीर का पुनरावर्तन मुनि नथमल करते हैं तो क्या नई बात है। युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ध्यान के माध्यम से संघ का नेतृत्व भली प्रकार से कर सकेंगे इसमें कोई संदेह नहीं है । मैं हृदय की समस्त शुभकामनाक्षों के साथ उनका अभिनन्दन करता हूं। मुनिश्री सागरमल जी 'श्रमण' मुनिश्री सागरमल जी ने इस अवसर पर अपने उद्बोधन सन्देश में कहा किसी भी सुघड़ कृति को देखकर उसके कुशल कलाकार की सहज स्मृति हो आती है । सेवाभावी मुनिश्री चम्पालाल जी की याद हम सबको गद्गद् कर देती है। वे एक प्राणवान् पुरुष थे। उनका जीवन-व्यवहार जितना मृदु था, अनुशासन उतना ही कठोर था। स्वर्गीय भाई जी महाराज के संरक्षण में रहने वाले मुनियों में आचार्यश्री तुलसी के बाद युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ (मुनि नथमल जी) एवं मुनिश्री बुद्धमल जी आदि हैं। तेरापंथ धर्म-संघ के जाने-माने नक्षत्र जिन्हें आज गौरव से देखते हैं, वे सभी भाई जी महाराज की संरक्षण की जंती में से निकले हैं। उनके अनुशासन की खरसाण से उतरने वाला एक हीरा आज खण्ड ४, अंक ७-८ ४७३
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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