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श्री कन्हैयालाल छाजेड़, अध्यक्ष-अखिल भारतीय ते० .० परिषद
तन से, अवस्था से और चिन्तन से युवाचार्य युवक हैं। इसलिए युवकों की ओर से एक युवक का अभिनन्दन करते हुए गौरव की अनुभूति कर रहा हूँ। सुप्रसिद्ध पत्रकार श्री जयदेव गोयल
बीकानेर से राजलदेसर की रेल यात्रा में कादम्बिनी फरवरी अंक देखने को मिला। पन्ने उलटते हुए नजर भाई कमलेश चतुर्वेदी के लेख "वह एक पदयात्री" पर अटक गई। पढ़कर मन में न जाने क्यों एक अतुलित आनन्द की अनुभूति हो रही थी। राजलदेसर में वह आनन्द शतगुणित हो उठा जब आचार्यप्रवर ने महाप्रज्ञ मुनिश्री नथमल जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। यदि इस ऐतिहासिक एवं अभूतपूर्व अवसर को न देखता तो जिन्दगी भर अपने को माफ न कर पाता।
समाज के वरिष्ठ कार्यकर्ता श्री शुभकरण दसाणी
यह सुन्दर दृश्य देखकर मैं भाव-विभोर हो रहा हूँ। क्या कहूं ? मुझे गोस्वामी तुलसीदास की वह पंक्ति याद आ रही है-गिरा अनयन नयन बिनु बानी : जिह्वा के नयन नहीं हैं और नयनों के जीभ नहीं है। इस पुनीत अवसर पर सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं। पद को पाकर व्यक्ति गौरवान्वित होता है, परन्तु कभी-कभी व्यक्ति को पाकर पद शोभित होता है । आज यह युवाचार्य का पद भी महाप्रज्ञ को पाकर धन्य हो रहा है । ... युवक कार्यकत्ता श्री गुलाबचन्द जी चण्डालिया, राजलदेसर
हम राजलदेसर वासियों की प्रसन्नता का आज कोई ठिकाना नहीं है। आचार्यवर ने महती कृपा करके हमें एक साथ दो-दो अवसर प्रदान किये। बृहद् मर्यादा महोत्सव के साथ ही युवाचार्य का गरिमापूर्ण पद भी राजलदेसर की धरती पर प्रदान किया गया। मैं अपनी ओर से तथा समस्त राजलदेसर वासियों की ओर से श्रद्धास्पद आचार्यप्रवर तथा युवाचार्य महाप्रज्ञ जी का शत-शत अभिनन्दन करता हूं।
महाप्रज्ञ की कहानी जनता की जुबानी श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, उदयपुर की ओर से युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ अभिनन्दन समारोह का समायोजन मुनिश्री सागरमल जी 'श्रमण' के सान्निध्य में तेरापंथी सभा भवन में किया गया। जिसमें शहर के गणमान्य नागरिकों के अलावा बौद्धिक, साहित्यकार, पत्रकार बड़ी संख्या में उपस्थित थे। शहर के विभिन्न वर्गों के लोगों ने श्रद्धा-सुमन प्रस्तुत किए। इस कार्यक्रम में बम्बई सूरत आदि महानगरों के लोग भी उपस्थित थे। श्री कमलचन्द सोगानी
उदयपुर विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर श्री कमलचन्द सोगानी ने युवाचार्यश्री का अभिनन्दन करते हुए कहा-जब मैंने मुनिश्री नथमल जी को युवाचार्य
खण्ड ४, अंक ७-८
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