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को बचाया है । लगता है, युवाचार्य के निर्वाचन के समय स्वयं आचार्य भिक्षु आचार्यश्री तुलसी के रूप में प्रकट थे ।
४ फरवरी ७६ को राजलदेसर में युवाचार्यश्री के अभिनन्दन समारोह में व्यक्त विभिन्न वक्ताओं के वक्तव्यों से कुछ चुने हुए उद्गार यहां प्रस्तुत हैं—
युवाचार्य श्री के सहपाठी मुनिश्री बुद्धमल जी
मुनिश्री ने संतों की ओर से अभिनन्दन पत्र भेंट करते हुए कहा कि - आज प्रातःकाल की घटना है । जब मैं अपने कमरे में था तो युवाचार्य सीधे मेरे कमरे में आ गये और मुझे कहा- तुम तो मेरे साथी हो । मेरा हाथ पकड़कर आचार्यश्री के पास ले गये | आचार्यश्री ने जो शब्द फरमाये, उनको सुनकर मैं गद्गद् हो गया। बोलने की इच्छा होते हुए भी नहीं बोल पाया । सुदामा श्रीकृष्ण के पास चावल लेकर गये थे । अब मैं क्या दूं, जब द्वारकाधीश स्वयं घर आ गये हैं । मेरे पास चावल नहीं हैं, यह अभिनन्दन पत्र है, उसे आपको समर्पित करता हूँ ।
साध्वीप्रमुखा महाश्रमणी श्री कनकप्रभा जी
श्रमणी संघ की ओर से साध्वी प्रमुखा जी ने युवाचार्यश्री को अभिनन्दन पत्र भेंट करते हुए कहा कि -- विशिष्ट व्यक्ति का दिन होता है तो उसके विषय में समाचार-पत्रों में चर्चा की जाती है । युवाचार्य की नियुक्ति अप्रत्याशित हुई है, फिर भी मासिक कादम्बनी के फरवरी अंक में भाई कमलेश चतुर्वेदी द्वारा लिखित एक लेख है, जिसमें युवाचार्य के जीवन की झलक आपको पढ़ने को मिलेगी ।
साध्वीश्री संघप्रभा जी
आज मैं अपनी जन्मभूमि में इस प्रकार का महोत्सव देखकर प्रमुदित हो रही हूँ । जिन्होंने यह महोत्सव नहीं देखा, संभवतः वे आगे भी ऐसा महोत्सव नहीं देख पायेंगे । सारा वातावरण उत्साह से प्रफुल्लित हो रहा है ।
साध्वीश्री कमलश्री
कोर गाँव को लोग नहीं पहचानते थे । उसकी पहचान मुनिश्री नथमल जी के नाम से होती थी ।
मुनिश्री श्रीचन्द्र जी
कल का दृश्य देखकर मेरा मन प्रसन्नता से भर गया। दूसरी ओर मुझे रिक्तता की अनुभूति हो रही है । मेरा एक मात्र जो आधार था, आज वह आधार व्यापक बन गया । मुनिश्री सागरमल जी 'श्रमण'
मुझे कल मौका मिलना चाहिए था, नहीं मिला । उस अभाव के लिए मैं गद्गद् हूँ और इस आनन्द के लिए मूक अभिनन्दन करता हूँ ।
खण्ड ४, अंक ७-८
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