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________________ समाचार-दर्शन राजलदेसर मर्यादा-महोत्सव मैं महाप्रज्ञ मुनि श्री नथमल तेरापन्थ के दसवें आचार्य घोषित राजलदेसर में आयोजित ११५वें मर्यादा महोत्सव के अवसर पर आचार्य श्री तुलसो अपने विद्वान् शिष्य मनि श्री नथमल जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। मुनिश्री की प्रखर मेधा, सूक्ष्मतम गहराइयों में पैठने की शक्ति, गुरु के प्रति एकलव्य जैसा समर्पण भाव और आचार निष्ठा ने आपको ज्ञान, दर्शन और चारित्र के शिखर पर प्रतिष्ठित किया है । आप हिन्दी, संस्कृत एवं प्राकृत के मनीषी विद्वान हैं। अब तक आपके लगभग एक सौ ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं । आप संस्कृत के आशुकवि हैं। टमकौर (राज.) में सन् १९२० में जन्मे; मुनिश्री सन् १९३० में दीक्षित हुए; सन् १९६३ में निकाय-सचिव बने; सन् १९७८ में महाप्रज्ञ' उपाधि से विभूषित हुए और अब दिनांक ३ फरवरी, १९७६ को युवाचार्य घोषित किए गए हैं। साध्वी प्रमुखा कमकप्रभा जी "महाश्रमणी" विशेषण से अलंकृत राजलदेसर में आयोजित ११५वें मर्यादा महोत्सव पर आचार्यश्री तुलसी ने साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी की सेवाओं का मूल्यांकन करते हुए कहा--साध्वी प्रमुखा कोई आचार्य न होने पर भी आचार्य-प्रवृति का पूरा दायित्व कुशलतापूर्वक निभा रही हैं। सात साल के स्वल्प समय में ही इन्होंने समूचे समाज के हृदय को जीत लिया, यह प्रत्यक्ष है। इनकी सहज विनम्रता, आचार-कौशल और सेवा-भावना से मैं प्रसन्न हूँ। अतः मैं इनको आज महाश्रमणी विशेषण से अलंकृत करता हूं। - कमलेश चतुर्वेदी युवाचार्यश्री का अभिनन्दन मुनिश्री महेन्द्र कुमार जी ___संयोजकीय वक्तव्य में मुनिश्री महेन्द्र कुमार जी ने कहा-युवाचार्य के रूप में श्री महाप्रज्ञ जी के प्रतिष्ठापन से समस्त अध्यात्म-जगत् को एक नई चेतना प्राप्त हुई है। भौतिकता की बाढ़ को रोकने के लिए आचार्यप्रवर ने एक सुदृढ बांध बना कर सारे युग ४६८ तुलसी-प्रज्ञा
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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