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________________ एक सन्देश : युवापीढी के नाम कु० मुकेश जैन संसार में यदि कोई कठिन साधना है, तो वह यह है कि मनुष्य जीवन पाकर वास्तविक इन्सान बनना । मानव यदि मनुष्यत्व को जीवन में धारण करे, तो मानव जन्म धारण करने के उद्देश्य को स्वतः पा जाता है। जैन आगम उत्तराध्ययन-सूत्र में मनुष्यत्व के लौकिक, आध्यात्मिक महत्त्व को अभिव्यक्त करते हुए कहा गया है कि मनुष्यत्व मूलधन है। मनुष्य के द्वारा मानवता, नैतिकता और सन्तोष को अपना लेने से परिवार और समाज का स्वतः विकास हो जाता है । यदि एक झोंपड़ी में रहने वाले व्यक्ति का रहन-सहन, आचार-विचार, कुप्रवृत्तियों से मुक्त पर-कल्याण की भावना पर आधारित है, तो उसका जीवन, परिवार सभी निरन्तर लौकिक सुख-शान्ति के पथ पर अग्रसर होता जाता है। यदि भौतिक वस्तुओं एवं धन सम्पत्ति से युक्त एक परिवार में रहने वाले व्यक्तियों के चरित्र में भ्रष्टता, अनैतिकता, अमानवता व्याप्त होती है, वह परिवार अच्छा तो हो ही नहीं सकता है, निसंदेह वह अल्प काल में ही पतन के गर्त में चला जाता है। परिवार में प्रेम-प्रीति का वातावरण भी आवश्यक है । जिस परिवार में प्रेम-प्रीति न हो, ऐसे परिवार में जैन मुनि को भिक्षा लेने हेतु न जाने का निर्देश किया गया है । परिवार, समाज और राष्ट्र के निरन्तर विकास के लिए नयी पीढ़ी के जीवन को देखना होगा। नयी पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी में विचारों का एक संघर्ष चलता रहता है। आज की आधुनिक पीढ़ी को सही दिग्दर्शन की आवश्यकता है। नयी पीढ़ी में व्याप्त बुराइयों को देखते हैं तो दृष्टिगोचर होता है कि आज की नयी पीढ़ी श्रम-साधना से दूर हटती जा रही है । आज का नवयुवक दूध तो पीना चाहता है, परन्तु गोबर उठाने में उसे अपने हाथों के गन्दे हो जाने का भय बना रहता है । वह स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों के सेवन के लिए लालायित रहता है, परन्तु गेहूँ पिसवाने में अपमान समझता है। आज के युवक-युवतियाँ हाथों से काम करना एक ओछी बात समझने लगे हैं। वस्तुतः किसी भी अच्छे फल देने वाले श्रमसाध्य कार्य को छोटा समझना घटियापन है, क्योंकि कोई भी कार्य मनुष्य को निम्न नहीं बनाता, कोई श्रम करने से छोटा नहीं हो जाता है, ऐसी धारणा ही मनुष्य का विकास कर सकती है। पाश्चात्य प्रभाव से युक्त तरुण-तरुणियां होटलों, क्लबों, सिनेमाओं में जाकर नयी खण्ड ४, अंक ७-८ ४६५
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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