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________________ चाय-पान पानी की तरह गृहस्थ समाज में सर्वत्र सुलभ है और इसे एक निर्दोष पेय माना जा रहा है। ___ अनुभव के आधार पर चाय के रसिकों का कहना है, मानना है कि चाय की एकएक पत्ती में चुस्ती है, फुरती है। यह चेतना लाती है, तरो-ताजा बनाती है, स्फूर्ति लाती है। यह भयंकर सर्दी में शरीर को गरम और असह्य गर्मी में शरीर को ठंडा रखती है। भयंकर से भयंकर गरमी में भी चाय तुरन्त पसीना निकाल कर शरीर को सुखद शीतलता का अनुभव कराती है। दिमाग रूपी कार (Car) के लिए चाय पेट्रोल का काम करती है। यह दिमाग को तरो-ताजा बनाकर थकावट-सुस्ती दूर करती है। चिन्तन करने की क्षमता में वृद्धि करती है। आधुनिक वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में चाय का परीक्षण करने पर उसमें निम्न रसायनिक द्रव्य पाये गये : केफीन- (Caffeine) __ केफीन एक प्रकार का विष है । शुद्ध केफीन का एक छोटा-सा बिन्दु इजेक्शन द्वारा शरीर में प्रविष्ट कराया गया तो चन्द मिनटों में प्राणान्त हो गया । मष्तिस्क में केफीन सीधा प्रविष्ट कराया गया तो शरीर में तीव्र झटके आने लगे । तीव्र विष प्रमाणित होने पर भी चाय में केफीन की मात्रा २ से ४ प्रतिशत ही होती है, अतः चाय-पान से शरीर को विशेष हानि नहीं पहुंचती । हम जो चाय पीते हैं उनका केफीन शरीर में अपना कार्य-सम्पादन कर गुर्दो (Kidneys) में आकर मूत्र-मार्ग द्वारा पेशाब के रूप में बाहर निकल जाता है तो केफीन जन्य जहर के विषैले प्रभाव की यह प्रक्रिया एक प्रकार से शरीर का प्राकृतिक संरक्षण है। यदि केफीन पेशाब के साथ मिलकर मूत्र-मार्ग द्वारा शरीर से बाहर न निकले और शरीर में इकट्ठी होने लगे तो हालत सोचनीय बन जाये । सामान्य स्थिति में चाय में अति अल्प मात्रा में मौजूद केफीन शरीर में ताजगी एवं स्फति लाती है। रात्रि-जागरणजन्य आलस्य व सुस्ती को दूर करती है। दिमाग में ताजगी लाकर उसमें नये विचार, नये चिन्तन को उत्पन्न करती है। यह जलवायु परिवर्तनजन्य विकृतियों से शरीर की रक्षा करती है। केफीन पेट की गैस सम्बन्धी शिकायतों को भी मिटाती है। शरीर में सन्धिस्थलों-जोड़ों के दर्द-गठिया (Rheumatism) में भी केफीन लाभप्रद सिद्ध हुई है। चाय की पत्ती में Theine नामक रासायनिक भी पाया गया है, जो सिरदर्द, शरीर के दर्द और स्नायुजन्य पीड़ा में भी उपयोगी सिद्ध हुआ है। चाय में टैनीन (Tannin) नामक एक कषैला (Astringent) द्रव्य भी पाया जाता है। जब चाय लम्बे समय तक पानी में उबाली जाती है, अथवा ठंडी होने पर चाय को पुनःउबाला जाता है, तो ऐसे चाय के पानी में टैनीन की मात्रा अत्यधिक घुल जाती है। ऐसी टॅनीन युक्त चाय शरीर में विष का सा काम करती है । अतः चाय को लम्बे समय तक पानी में उबाल कर पीना हानिप्रद है। इससे भूख बंद सी हो जाती है । हाजमा बिगड़ जाता है। ४६२ तुलसी-प्रज्ञा
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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