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________________ से अलंकृत किया है । मर्यादा महोत्सव के अवसर पर विशाल जनमेदिनी को सम्बोधित करते हुए आचार्य प्रवर ने कहा - " साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ने सात वर्ष के स्वल्प समय में समूचे समाज के हृदय को जीत लिया, यह प्रत्यक्ष है । इसकी सहज विनम्रता, आचार कौशल और सेवा - भावना से प्रसन्न हूं । अतएव इसे आज महाश्रमणी विशेषण से समलंकृत करता हूं।" आचार्यप्रवर के एक-एक शब्द में आपका कर्तृत्व और व्यक्तित्व प्रतिबिम्बित हो रहा है। परमश्रद्धेय आचार्यप्रवर और महाश्रमणी साध्वी प्रमुखा श्री जी के कुशल नेतृत्व और मार्गदर्शन में साध्वी समाज तीव्रगति से विकास के नए-नए आयाम उद्घाटित करता रहे इसी शुभाशंसा के साथ । शतशः अभिनन्दन - वन्दन । [ पृष्ठ ४४५ का शेषांश ] दो - जीव और निर्जरा हैं । इससे आठ बोल - पाँच लब्धि ( दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य) और तीन वीर्य (बाल वीर्य', पंडित वीर्य, बाल- पंडित वीर्य 3 ) पाये जाते हैं । २६. वेदनी आउ नांम गोत नो, क्षयोपशम नहि होय । तिण कारण ए च्यारु ना कहया, जाणे विरला कोय | वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र का क्षयोपशम - निष्पन्न नहीं होता इसलिए इन चारों का कथन नहीं किया गया । इस मर्म को विरले व्यक्ति ही समझ सकते हैं । १. पहले से चतुर्थ गुणस्थान वाले प्राणियों की शक्ति । २. छठे से चौदहवें गुणस्थान वाले प्राणियों की शक्ति । ३. पाँचवें गुणस्थान वाले प्राणियों की शक्ति । २७. ढ़ाल भली ए तीसरी, कहया निपन तज धंद | भीक्खू भारीमाल ऋषराय थी, जयजश अधिक आनंद ॥ तीसरी ढ़ाल में निर्विघ्न रूप से कर्मों के उदय - निष्पन्न आदि की चर्चा की गई है । आचार्य भिक्ष, भारीपाल ऋषिराय के प्रभाव से जयजश ( जयाचार्य) के आनंद ही (क्रमशः ) आनंद है । खंड ४, अंक ७-८ ४४६
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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