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आचार्यप्रवर के पावन सान्निध्य में ज्ञान, दर्शन और चरित्र की त्रिपथगा में आपने अवगाहन किया। चारित्रिक उज्ज्वलना के साथ-साथ स्वल्प समय में ही व्याकरण, शब्दकोश, काव्य, साहित्य, आगम आदि का तलस्पर्शी—अध्ययन किया। अपने यहाँ प्रचलित पाठ्यक्रम की स्नातकोत्तर परीक्षाओं में विशिष्ट योग्यता प्राप्त कर नए कीर्तिमान स्थापित किए। हिन्दी, संस्कृत एवं प्राकृत आदि भाषाओं की आप अधिकृत विदुषी हैं तथा कुशल लेखिका और कवयित्री भी हैं।
"सरगम" नामक काव्य संकलन प्रकाशित हो चुका है, जिसमें आपकी काव्यप्रतिभा मुखर हुई है। आगमवाचनाप्रमुख आचार्यप्रवर के नेतृत्व में चल रहे आगम अनुसंधान कार्य में आप वर्षों से संलग्न हैं। अनयोगद्वार और राजप्रश्नीयसूत्र हिन्दी में अनूदित कर चुकी हैं और भगवती जैसे विशालकाय आगम का हिन्दी अनुवाद कर रही हैं ।
युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी द्वारा प्रणीत कालूयशोविलास, डालम चरित्र, माणकमहिमा, चन्दन की चुटकी मली नन्दन निकुंज जैसे काव्य ग्रन्थों का और उद्योधन, अनतिकता की धूप और अणबत की छत्तरी, अणब्रत के आलोक में, अणब्रतः गति प्रगति, मुक्तिपथ, वचनवीथी आदि पुस्तकों का कुशलता से सम्पादन किया है।
भगवती सूत्र की जोड़ का निर्माण करते समय तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य बोलते और साध्वीप्रमुखा गुलाबसती लिखतीं। उनकी स्मरण-शक्ति और ग्रहणशक्ति इतनी तीव्र थी कि उन्हें लिखने के लिए दूसरी बार पूछना नहीं पड़ता। ठीक उसी इतिहास की पुनरावृत्ति कर रही हैं वर्तमान साध्वी प्रमुखाश्री जी।
___ आचार्यश्री तुलसी की दक्षिण यात्रा को एक हजार पृष्ठों में आलेखन कर आपने यात्रा-साहित्य में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है । सृजनर्मिता आपकी प्रशस्य मनोवृत्ति है । सृजन के क्षण को ही आप जीवन का सर्वोत्कृष्ट क्षण मानती हैं ।
अपने विनम्र व्यवहार, मिलन सारिता, कार्य पटुता, व्यवस्था सुघड़ता और अनुशासन कौशल से आपने न केवल साध्वीसंघ की प्रत्युत्तर हजारों-हजारों लोगों की अगाध श्रद्धा और हार्दिक सम्मान प्राप्त किया है।
. संघ में अग्रगणी साध्वियों में सबसे अल्पवयस्क साध्वी को साध्वी-संघ का बृहत्तर उत्तरदायित्व सौंपकर महामना आचार्यप्रवर ने आपके प्रति अनन्त विश्वास की अभिव्यक्ति दी है । दीक्षा पर्याय में मात्र ग्यारह वर्षीया साध्वी का आचार्य के दिल में इतना विश्वास पाना एक विरल विशेषता है।
बीसवीं सदी की सबसे बड़ी त्रासदी है—आस्था का अभाव। ऐसे बौद्धिक युग में छोटी-बड़ी पाँच सौ से अधिक सभी साध्वियों के दिल को जीतना और उनसे प्रगाढ़ श्रद्धा और सम्मान का पाना अपने आप में अपूर्व उपलब्धि है। इसी से प्रसन्न हो महाप्राण आचार्यप्रवर ने इस वर्ष के मर्यादोत्सव के पुण्य अवसर पर आपको 'महाश्रमनी' के अलंकरण
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तुलसी-प्रज्ञा