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(i) ज्ञान की गहरी पिपासा (ii) लक्ष्य के प्रति निष्ठा (ii) चरित्र की निर्मलता
ठीक समय पर ठीक काम करने की पक्षधर हैं आप । संकल्प की अद्वितीय अविचा लता, नियमित कार्य पद्धति, योजनाबद्ध प्रवृत्तियाँ, अप्रमत्तता, सतत जागरूकता प्रभृति विरल विशेषताओं ने आपके व्यक्तित्व और कर्तृत्व को सजाया-संवारा है।
आचार्यप्रवर के हर चिन्तन, इगित, दृष्टि, आज्ञा और निर्देश के प्रति आप सर्वात्मना समर्पित हैं। कौन क्या कह रहा है, इस पर बिना ध्यान दिए आप अविलम्ब उसकी पूर्ति के लिए पूरी ताकत से जुट जाती हैं।
___ इन्हीं सब विशेषताओं का आकलन कर वि० सम्वत् २०२८ में गंगाशहर मर्यादोत्सव के अवसर पर महामहिम आचार्यप्रवर ने आपको 'साध्वीप्रमुखा' के महिमा मंडित पद पर प्रतिष्ठित किया है । इस गरिमामय पद से आप विभूषित हुई और आप से यह महनीयपद गौरवान्वित हुआ।
युग-युग अत्यन्त आभारी रहेगा साध्वी-समाज, युगप्रधान आचार्यप्रवर का । जिन्होंने एक युवा साध्वी को विशाल श्रमणी परिवार का नेतृत्व सौंप कर युगीन अपेक्षा की सम्पूर्ति की है।
राजस्थान में एक गाँव है लाडनू, वहाँ के वैद (बम्बूवाला) परिवार में आपका जन्म हुआ। प्राथमिक शिक्षा सम्पन्न की।
आचार्यवर की जन्मभुमि, तीर्थभूमि लाडनू में शताधिक वर्षों से स्थविर साध्वियों का सतत स्थिरवास । सादगी और निश्छलता का निर्मल वातावरण, सर्वत्र चाँदनी से हिम धवल संस्कार और साध्वियों से मिलने वाली त्याग और तितिक्षा की जीवन्त प्रेरणाओं ने आपके मानस में विरक्ति का बीज-वपन कर दिया।
किन्तु बचपन से ही संकोचशील वृत्ति, कम बोलने की प्रवृत्ति और अपने आपको अनभिव्यक्त रखने की मनोवृत्ति ने आपके भीतर में विरक्ति के बावजूद भी शादी की आयोजना करवा दी । आपकी ही शादी पर आ रहे चाचा जी की ट्रेन में ही मृत्यु हो गई। सहसा लगा जैसे मनुष्य की उम्र अंजली का जल है, जो हर साँस के साथ रीत रहा है। यहाँ जो उगा है, अस्त होगा; जला है, वह बुझेगा; खिला है, वह बिखरेगा। जन्म जिसका हुआ है उसका मरण अनिवार्य नियति है।
इस अप्रत्याशित दुर्घटना ने संसार के प्रति सार्थक विकर्षण को और अधिक पुष्ट कर दिया । रचे हुए ब्याह को ठुकरा पन्द्रह वर्ष की वय में ही आपने प्रवेश पाया श्री पारमार्थिक शिक्षण संस्था में, जो संस्था साध्वी-जीवन की पूर्वभूमिका का निर्माण करती है। आध्यात्मिक संस्कारों का पल्लवन करती हई ज्ञान-गंगा में अभिष्णात होती हैं, जहाँ मुमुक्षु छात्राएँ। आपने उस संस्था में चार वसन्त बिताए । ज्ञान के क्षेत्र में अपनी बहुमुखी प्रतिभा प्रस्फुरणा से उदीयमान छात्रा के रूप में सम्मान पाया।
उन्नीस वर्ष की वय में सम्वत् २०१७, तेरापंथ द्विशताब्दी समारोह के ऐतिहासिक अवसर पर तेरापंथ की उद्भव स्थली केलवा' में आचार्य तुलसी के कर कमलों द्वारा आपका दीक्षा-संस्कार सम्पन्न हुआ। खण्ड ४, अंक ७-८