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एक युवा श्रमणी : महाश्रमणी'
साध्वी यशोधरा
तेरापंथ साध्वी-संघ एक प्राणवान् साध्वी-संघ है। सुनियोजित, सुव्यवस्थित, सुसंगठित, अनुशासित, सर्वात्मना समर्पित और श्रद्धानिष्ठ साध्वी-संघ को देखकर स्वयं आचार्यप्रवर कई बार फरमाते हैं- "साध्वियाँ हमारे संघ का गौरव हैं, अमूल्य निधि हैं और हैं महान् शक्ति।" षष्टि-पूर्ति के अवसर पर विशाल श्रमणी परिवार की अभ्यर्थना झेलते हुए उसके प्रत्युत्तर में आचार्यप्रवर ने मधुर मुस्कान बिखेरते हुए कहा
"तुम्हारा विकास ही मेरा सच्चा अभिनंदन है।"
जिस साध्वी-संघ के अभ्युदय के लिए स्वयं आचार्य अहर्निश प्रयत्नशील हो । जो अपनी एक-एक साँस और एक-एक पल, जिसके निर्माण में होमते हों, जिसके लिए अनन्त करुणा और अपरिमेय वात्सल्य का निर्झर सतत प्रवहमान हो वह साध्वी-संघ भला प्रबुद्ध, प्रभास्वर और उदितोदित कैसे नहीं होगा।
उसी साध्वी-संघ की वर्तमान में एक अप्रतिम उपलब्धि है महाश्रमणी साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभा जी । तेरापंथ धर्मसंघ के क्षितिज पर उभरकर आने वाली अनेक गरिमामयी संभावनाओं में आप एक समुज्ज्वल संभावना हैं। आचार्यप्रवर की हीरकनी मेधा ने ऐसे हीरे को तराशा, जिसमें एक साथ अनेक प्रतिभाओं की ज्योति-किरणे उद्भाषित हो रही हैं। आप एक भास्वर गौर ग्रहणशील चेतना की प्रतीक हैं । नारीजगत ऐसी अपूर्व उपलब्धि से उपकृत, अनुग्रहीत हुआ है।
चमकती आँखें, भव्य ललाट, गेहुंआ रंग, मुस्कान बिखेरता हुआ सौम्य चेहरा, लंबा कद, फुर्तीली चाल, इन सब में झलकता उनका बाह्य व्यक्तित्व जितना आकर्षक है, उससे भी कहीं अधिक समृद्ध है उनका अन्तर व्यक्तित्व ।
कितना अलंकृत है, उनका जीवन-काव्य । जिसकी एक-एक पंक्ति में अंकित हैसहज समर्पण, श्रमनिष्ठा, कला की कमनीयता, भावों का गाम्भीर्य, वाणी का माधुर्य, हृदय का औदार्य, भाषा की प्राञ्जलता, बुद्धि की कुशाग्रता, तत्त्वज्ञान की तलस्पशिता और कर्मयोग की गरिमा । आपके गतिशील जीवन के प्रतीक हैं
*साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभा जी को आचार्यश्री द्वारा प्रदत्त 'महाश्रमणी' अलंकरण के उपलक्ष्य में विशेष लेख ।
तुलसी-प्रज्ञा