________________
विनयी वैरागी दृढ त्यागो, नय नीति निपुण गुण के रागी । साधु क्रिया में जुड़े एक रस ली सब शक्ति बटोर ॥५॥ लेखन करते थे द्रुत गति से, लिख पाये प्रतियां बहु धृति से । कभी कभी ले लेते दिन में चार पत्र का छोर ||६||
उक्त संदर्भों के अन्तर्गत सरूप नवरसा में मुनि श्री की दीक्षा केवल चैत्र महीने में लिखी है । बाद में मघवागणी रचित तथा ख्यात में चैत्र शुक्ला ८ है । उसके पूर्व की किसी श्रावक द्वारा कृत ढाल में चैत्र बदि ८ है तथा मुनि जीवोजी (८६) द्वारा निर्मित ढाल में चैत्र बदि के साथ वार भी गुरुवार लिखा है । मुनि जीवोजी रचित ढाल सबसे प्राचीन और दीक्षा के दिन ही बनाई हुई है और उसमें दीक्षा से संबन्धित पूरा विवरण है, अतः उसे ही प्रमाणित मानना अधिक संगत होगा ।
८
इससे यह सिद्ध हो जाता है कि मुनिश्री की दीक्षा तिथि चैत्र बदि क्ष्मीं थी । ख्यात तथा मघवागणि रचित ढाल में दीक्षा तिथि चैत्र शुक्ला भूल से लिखी गई मालूम देती है । और भी प्राप्त होता है कि उन्होंने
मुनि जीवोजी कृत ढाल में एक विशेष विवरण भर यौवन के समय स्त्री की विद्यमानता में ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार कर लिया था ।
चढ़ता जोवन में सुंदर जीवत, सील आदरीयो रे।
एक चारित चित माहै वसीयो, वैरागी तप सूं तियो रे ॥
( मुनि जीवोजी (१६) कृत ढाल १ गा. १७)
इससे प्रमाणित होता है कि आप विवाहित थे । कहीं-कहीं ( सेठिया संग्रह आदि में ) जो ऐसा उल्लेख मिलता है कि आप विवाहित नहीं थे, वह उक्त आधार से सही नहीं है । मुनि जीवोजी की ढ़ाल तथा अन्य कृतियों में भी ऐसा उल्लेख नहीं पाया जाता कि आपने पत्नी के जीवित काल में दीक्षा ली। इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि आप पत्नीवियोग के बाद ही दीक्षित हुए ।
१. मुनिश्री ने लाखों पद्य लिखे । मघवागणि रचित ढा० गा० ३ में है
" वलि लाखां ग्रंथ लिख्यो मुनि हो, वारु उद्यम अधिक उदार के । ”
लेखनी बहुत द्रुत गति से चलती थी। दिन में ४, ५ पन्नों तक लिख लिया करते थे । उनके अक्षर 'चीड़ी खोजिए' (टेढे-मेढे ) थे, पर अशुद्धियां विशेष नहीं आती थी । उनकी लेखन गति के विषय में जयाचार्य एक पद्य फरमाया करते थे ।
"एक पानो रगड्यो, दोय पाना रगड्या तीजो पानो रगडे रे ।
चोथो पिण कर देवे
अनोपचंद
अणगार
खण्ड ४, अंक ७-८
त्यार, पर्छ पांचवां सूं झगड़े रे ॥ उठ्यो कर्मा ने रगड़े रे ॥"
४३३