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(लय-पीलो रंगा द्यो..) तरुण तपस्वी-तरुण तपस्वी, संत अनूप कहाये, साधक जन में । तरुण । परम-यशस्वी-परम यशस्वी, स्थान ऊवंतम पाये, साधक जन में । तरुण"ध्र वा कलयुग में सतयुग सी सचमुच, तप की धारा खोली । साध ""। साहस रस नस-नस में भरकर, बोली ऊंची बोलो । सा" "७।। वज्रऋषभनाराच संहनन, नहीं इस समय होता। किन्तु श्रमण ने कर दिखलाया, उससे भी समझौता ॥८॥ तप की श्रुति से अथवा स्मृति से सबका शिर डोलाता।
अथ से लेकर इति तक सारी, संख्या सम्मुख लाता ॥६॥ १. मुनिश्री बड़े उग्र तपस्वी हुए हैं। उनकी तपश्चर्या का वर्णन रोमांचकारी है। पढ़ने से
लगता कि वे तपस्या में एक रस हो गये थे। खाने-पीने आदि में रुचि नहीं रही थी। एक श्रावक द्वारा रचित गीतिका में वर्षों के क्रम से उनकी तपस्या का विवरण इस प्रकार मिलता है : सं० १८६२ में–२१ दिन, ६ दिन का आछ के आगार से तप किया । सं० १८९६ में-६३ , सं० १८९७ में- ८ , पानी , " " " " सं० १८९८ में--३७ ,,
आछ" सं० १६०३ में- ८ ,, सं० १६०५ में--१०६ , सं० १९०६ में- ४ ,
पानी ,, , , " " सं० १९०७ में--७७ ,
आछ , " " " सं० १९०८ में-१३ , सं० १६०६ में-१८७ सं० १९१० में-१९३ सं० १९११ में-१८१,, सं० १९१२ में-२१८ सं० १६१३ में-५३ ,,
पानी , " " " " सं० १९१४ में-४८ , सं० १९१५ में--१९३ ,, आछ , , , , " सं० १९१६ में—३०७,, पानी ,, , , , सं० १९१७ में-३८,४,५,७,१७ और ५ दिन पानी के आगार से किये । सं० १९१८ में--१० दिन चौविहार, ११,१२ पानी के आगार से किये । १२ में तीन
दिन पानी पिया। सं० १९१६ में-२१ दिन में १० दिन चौविहार किये, ७ में दो दिन पानी पिया एवं
४ थोकड़े और किये। ४३४
तुलसी-प्रज्ञा
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