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इतिहास के स्वणिम पृष्ठों से
११४॥३-२७ मुनि श्री अनोपचन्द जी (नाथद्वारा) (संयम पर्याय सं० १८६२-१९२६)
-मुनि नवरत्नमल (लय-पीर-पीर क्या.........) देखो रूप अनूप संत का कर सज्जन सब गौर । विकसित होगी तन की कलियां पुलकित मन का मोर ॥देखो" मेदपाट में नाथद्वारा, राज्य ‘गुसाईंजी' का सारा । थे तिलेसरा नंदलालजी के सुत कुसुम किशोर ॥ देखो ...|| परिजन जन का बहु मेल मिला, धन संपद् से गृह कमल खिला । तूठ गया है भाग्य देवता आई मंगल भोर ॥२॥
' दोहा भगिनी लघ थी आपकी, चंपा जिसका नाम।
दीक्षित पहले आपसे, हो पाई निष्काम' ।।३।। १. [स्वामी जी से लेकर अद्यावधि दीक्षित समस्त साधु-साध्वियों की सूची रहती है, उसी संख्याक्रम का सूचक ११४ अंक यहाँ दिया गया है। अतः सर्वत्र साधु-साध्वियों के नाम के आगे दी गई क्रम संख्या को उक्त प्रकार समझना चाहिए। साधु और साध्वियों की सूची पृथक्-पृथक् है। ३।२७ का तात्पर्य तीसरे आचार्य श्री रायचन्द जी के समय दीक्षित २७वें साधु से है ।] २. मुनि श्री नाथद्वारा (मेवाड़) के नंदलाल जी तलेसरा के पुत्र थे। उनकी माता का नाम दोलांजी था।
जनक नंदोजी नीको श्रावक, श्रीजीदुवारै रे । माता दोलां अंगज अनोपचंदजी वंश उद्धारै रे॥
(मुनि जीवोजी (८६) कृत गुण वर्णन ढाल १, गा०२) वासी श्रीजीद्वार ना हो मुनिजन, नंदराम नो नंद के । जाति तलेसरा जेहनी हो गुणिजन, अनोपचंद नाम गुण वृद के ॥
(मघवागणि रचित ढाल १, गा० १) ३. मुनि श्री की छोटी बहन साध्वी श्री चंपाजी (१४०) ने उनसे पहले सं० १८९१ में दीक्षा ली।
(ख्यात) खण्ड ४, अंक ७-८
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