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________________ का शासन सूत्र अब सम्पूर्ण रूप से आचार्य तुलसी को संभालना था। इसके लिए विधिवत् कार्यवाही हुई भाद्रव शुक्ला नवमी को। तेरापन्थ के इतिहास की यह चौंका देने वाली घटना थी, जब एक बाईस वर्षीय युवक ने धर्मसंघ की समग्र जिम्मेवारी संभालकर उसका कुशलतापूर्वक संचालन करना शुरू कर दिया । सैकड़ों साधु-साध्वियों के अन्तरंग और बहिरंग विकास की योजनाओं के साथ उनकी समुचित क्रियान्विति, हजारों-हजारों अनुयायियों का नेतृत्व और सम्पर्क में आने वाले लाखों लोगों का पथदर्शन । साधारण व्यक्ति के लिए यह सब बड़ा जटिल हो जाता है, किन्तु आचार्यप्रवर ने इस दक्षता और दीर्घदर्शिता से काम किया कि एक उदीयमान धर्मसंघ भी अपनी तेजस्विता एवं लोक-चेतना को अभ्युदय देने वाली प्रवृत्तियों से जन-जन के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। प्रथम देन उस समय तेरापन्थ धर्मसंघ में शिक्षा का विकास नहीं था । तत्कालीन सामाजिक वातावरण में भी शिक्षा-सम्बन्धी आयामों का उद्घाटन नहीं हुआ। विचार-अभिव्यक्ति का माध्यम मात्र राजस्थानी भाषा थी। कालूगणी के युग में संस्कृत भाषा में बोलने और लिखने का क्रम शुरू हो गया था। भिक्षु-शब्दानुशासनम् और कालू कौमुदी-ये संस्कृत व्याकरण कालूगणी के सान्निध्य में ही निर्मित हुए और उनके पठन-पाठन का क्रम प्रारम्भ हो गया। फिर भी किसी विषय के सर्वांगीण अध्ययन की दिशाएं नहीं खुली थीं। युगचेतना ने करवट ली और शिक्षा का सामाजिक मूल्य प्रतिष्ठित हो गया । आचार्यश्री तुलसी ने अनुभव किया- यदि हमारे साधु-साध्वियाँ प्रबुद्ध नहीं होंगे, तो वे समाज को क्या दे सकेंगे ? इस बढ़ती हुई बौद्धिकता में धार्मिक संस्कारों का पल्लवन भी अनुरूप साधन सामग्री के द्वारा ही हो सकता है। आचार्यश्री जो भी बात सोचते हैं, जो भी स्वप्न देखते हैं, वह निश्चित रूप से साकार हो जाता है। तेरापन्थ संघ में शिक्षा का अभ्युदय हुआ। हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत, इंग्लिश आदि विशिष्ट भाषाओं के साथ प्रान्तीय भाषाओं में लिखनेबोलने का अभ्यास क्रम चला। इतिहास, दर्शन, व्याकरण, आगम, गणित आदि शैक्षणिक विधाओं में साधु-साध्वियों ने प्रवेश पा लिया । विभिन्न दर्शनों के तुलनात्मक अध्ययन का द्वार खुला और दो दशकों में ही तेरापन्थ संघ का शैक्षणिक स्तर समुन्नत हो गया। इसके लिए समय-समय पर अध्यापन का कार्य स्वयं आचार्यश्री ने किया है । परीक्षा-पाठ्यक्रमों का प्रयोग, प्रोत्साहन, प्रेरणा आदि बिन्दुओं ने साधु-साध्वियों के मन में विद्या प्राप्त करने की एक अमिट प्यास जागृत कर दी जो कि आज भी उसी अतृप्त भाव से बढ़ती जा रही है। साध्वियों का विकास तेरापन्थ धर्मसंघ में साध्वियों की संख्या उत्तरोत्तर प्रवर्धमान रही है। संख्या-वृद्धि के साथ-साथ उनकी व्यवस्थाओं में भी सुधार होता रहा है, परन्तु विकास की सब संभावनाओं को व्यवस्था नहीं मिली। इस दृष्टि से उनके लिए विशेष अभ्युदय की अपेक्षा थी । अष्टमाचार्य श्री कालूगणी ने अपने उत्तराधिकारी आचार्यश्री तुलसी को संघ के भावी कार्यक्रम ४२४ तुलसी-प्रज्ञा
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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