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अभिनन्दन का प्रत्युत्तर
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__ आचार्यवर की अपने उत्तराधिकार की घोषणा का आपने जिस आन्तरिकता 0 और हार्दिकता से स्वागत किया है और मेरे दायित्व के प्रति जो उत्साहपूर्ण भावना 10 व्यक्त की है, उससे मैं अपने उत्तरदायित्व के प्रति अपने आपको और अधिक गंभीर : 0 अनुभव करता हूं और यह विश्वास दिलाता हूँ कि आपकी आकांक्षाओं की पूर्ति में । " मेरा योगदान सदा आपको उपलब्ध रहेगा।
आचार्यवर ने मुझे संघ का जो दायित्व सौंपा है उसकी श्रीवृद्धि करना मेरा 0 ० पवित्र कर्त्तव्य होगा । ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना के द्वारा समूचे संघ को 3: अध्यात्मनिष्ठ बनाने और उसकी आत्मचेतना को युगचेतना के संदर्भ में समुन्नत . 6 करने के लिए मेरी सारी शक्ति संघ को समर्पित रहेगी। मेरा धर्मसंघ आचार्यवर ० ० द्वारा उपलब्ध दो मूल्यवान अवदानों-अणुव्रत और प्रेक्षाध्यान के द्वारा समूची: 0 मानवजाति की सेवा करता रहेगा। मैं फिर अपने आत्मविश्वास को दोहराता हूं। ० कि संघ सम्पदा कि समृद्धि के लिए आप सबका सहयोग और सद्भावना उप- 0
लब्ध कर आचार्यवर की कृतियों को नया आयाम दे अपने दायित्व के प्रति सदा । 0 जागरूक रहूंगा।
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-- युवाचार्य महाप्रज्ञ
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१७ फरवरी ७६, चूरू
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तुलसी-प्रज्ञ