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________________ यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के अधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी ने अपने लब्धप्रतिष्ठ अन्तेवासी महाप्रज्ञ मुनिश्री नथमल जी को ११५वें मर्यादा महोत्सव के अवसर पर अपने उत्तराधिकारी के रूप में युवाचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया है ।... महाप्रज्ञ मुनिश्री नथमल जी गम्भीर चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, ओजस्वी वक्ता, उच्चकोटि के लेखक, आशुकवि और आदर्श सन्त हैं। आप प्राकृत, संस्कृत और हिन्दी भाषा के अच्छे विद्वान् हैं । आपके द्वारा उच्चकोटि के विशाल साहित्य का निर्माण हुआ है और आपके लगभग एक सौ ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। .... ऐसे सर्वगुण सम्पन्न विद्वान् सन्त का युवाचार्य पद पर प्रतिष्ठित किये जाने से समस्त समाज को अत्यधिक आनन्द की अनुभूति होना स्वाभाविक ही है। इस उल्लासमय अवसर पर मैं पूज्य युवाचार्यश्री नथमल जी का हार्दिक अभिनन्दन करता हूं। -प्रो० उदयचन्द्र जैन बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी आचार्यश्री ने धर्मसंघ का महावटवृक्ष रोपित किया है तथा आपके मार्गदर्शन में यह संघ दिनों-दिन प्रगति पथ पर है । धर्मसंघ सदैव आपका ऋणी रहेगा। महाप्रज्ञ युवाचार्य मुनिश्री नथमल जी जैसे कर्मठ सन्त ही आपके द्वारा सौंपे गये उत्तराधिकार को संभालने में सक्षम हैं। विश्वास है उनके सान्निध्य में धर्मसंघ उत्तरोत्तर प्रगति करता रहेगा। सरदारसिंह चौरड़िया, बिरला नगर, ग्वालियर ...... मैंने पूज्य मुनिश्री को काफी नजदीक से देखा है और अनुभव किया है कि उनमें आखिल जैन समाज का ही नहीं वरन् अखिल मानवता का महामंगल स्पन्दित है । वे एक उच्चकोटि के चिन्तक हैं, उनके रूप में सुकरात ही जैसे जन्मा है; उनकी वाणी प्रश्निल होती है, इतने प्रश्न, इतने निशान और हर निशान का अपना अचूक निशाना, सच, यह कोई महाविभूति ही कर सकती है। मुझे राशि-राशि साधुवाद देने दीजिये पूज्य आचार्यश्री को जिन्होंने एक अतीव योग्य व्यक्तित्व को युग नेतृत्व सौंपा है । मुझे विश्वास है कि जिस युगाश्व की वल्गा मुनिश्री के हाथों में दी गई है, वह दिग्विजय करेगा और युगप्रवर्तक सिद्ध होगा। मैं इन क्षणों में भाव-विभोर हूँ और उन्हें प्रणाम कर रहा हूं। ... डा० नेमीचन्द जैन सम्पादक 'तीर्थंकर' इन्दौर आचार्यश्री तुलसी द्वारा सभी दृष्टियों से अपने योग्यतम शिष्य स्थिरयोगी, प्रख्यात दार्शनिक महाप्रज्ञ मुनि नथमल जी को उत्तराधिकारी मनोनित करने की जानकारी प्राप्त कर अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव हुआ। आचार्यश्री की अनुपम सूझबूझ एवं दूरदशितापूर्ण इस सुखद समाचार से सारा समाज हर्ष, उल्लास और गौरव का अनुभव करता है। .-सोहनलाल कोठारी, न्यायाधीश खण्ड ४, अंक ७-८ ४१७
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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