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प्राप्त समाचारों से ज्ञात हुआ है कि मर्यादा महोत्सव के दिन परमाराध्य आचार्यप्रवर ने महाप्रज्ञ मुनिश्री नथमल जी को युवाचार्य पद प्रदान करवाया है। काश ! हम भी इस मंगल दृश्य को अपनी आँखों से देख पाते । प्रत्यक्षतः आचार्यप्रवर एवं युवाचार्यश्री के चरणों में अपनी भावाञ्जलि अर्पित करता । इस मंगल अवसर पर सबसे पहले मैं परमाराध्य परम पिता आचार्यश्री के चरणों में हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं। जिन्होंने भावी आचार्य की नियुक्ति करके संघ को निश्चिन्त बना दिया। स्वयं भी कृत्यकृत्य बन गए और संघ को भी कृत्यकृत्य बना दिया। इस पावन प्रसंग पर युवाचार्यश्री के प्रति यही मंगल कामना करता हूँ कि आपश्री का तेजस्वी जीवन धर्मसंघ को और अधिक तेजस्वी बनाए। आपकी प्रखर साधना धार्मिक जगत् को प्रभावित करने वाली सिद्ध हो। परमाराध्य, परम पिता आचार्य प्रवर और युवाचार्य प्रवर की यह समर्थ जोड़ी युगों-युगों तक संघ को नेतृत्व प्रदान करती रहे।
मुनि सुमेरमल (लाडनू)
गुरुदेव का यह निर्णय जनमत, संघमत और जैनेतरमत-तीनों के एकमत का निर्णय है । सबकी जयध्वनि निकल रही है । आचार्य प्रवर ने यह एक अद्भुत कार्य सम्पन्न किया है, जिसकी खुशी सबके दिल पर छाई है । सारी दृष्टियों से आचार्यश्री ने बड़ा सुन्दर कार्य किया है और संघ में चार चाँद लगाये हैं। युवाचार्य जी सदैव गुरुदेव के साथ रहे हैं। गुरुदेव ने ही उन्हें शिक्षा प्रदान की है। इस महावृक्ष को गुरुदेव ने ही लगाया है और उन्होंने ही अपने हाथों से सिञ्चित किया है । गुरुदेव ने संघनायक के रूप में आपको प्रस्तुत किया, इसके लिए हम सब कृतज्ञ हैं।
माघ शुक्ल सप्तमी सखर, युव पद दोनों ईश। नक्र भूषण, नव निष वरो, दे संतदास आशीष ।।
-मुनि जीवनमल, मुनि मुलतानमल
आचार्यश्री तुलसी ने एक ऐसी स्वस्थ चेतना के हाथों में संघ की बागडोर सौंपी है, जो स्वबोध के आलोक से जगमगा उठी है।
-- साध्वी राजीमती
स्थानांग सूत्र में गण-धारण और उसके संचालन हेतु जिन छह विशिष्ट गुणों का उल्लेख मिलता है, युवाचार्यश्री के जीवन में उन सभी गुणों का समन्वय है। ये आचार्यश्री के अमूर्त भावों को मूर्तरूप देने में अत्यन्त कुशल हैं। आचार्य प्रवर के मंगल स्वप्न अब और भी शीघ्रता से ठोस रूप ग्रहण करेंगे ।
___-- मुनि राकेश कुमार इस गरिमामय उत्तरदायित्व की प्राप्ति पर शत-शत शुभकामनाएँ। आपका मंगल नेतृत्व तेरापंथ धर्मसंघ का युग-युग तक योग-क्षम करता रहे, इसी शुभेच्छा के साथ ।
- मुनि डूंगरमल
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तुलसी-प्रज्ञा