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ये युवाचार्य महाप्रज्ञ के जीवन के पूर्वार्द्ध के थोड़े से प्रसंग हैं । जो कुछ वे आज हैं, उसके बीज उनके पूर्ववर्ती जीवन में अनुस्यूत थे, चाहे दीखते न हों । आचार्यश्री तुलसी तो एक द्रष्टा हैं । उन्हें तब भी यह सब दीखता था, जिसकी अभिव्यंजना उन्होंने महाप्रज्ञ मुनिश्री नथमल जी को अपना उत्तराधिकारी, तेरापंथ के भावी दशम आचार्य घोषित करके अब का है ।
एक महिमा महीयान् संघाधिनायक के वरीयान् अन्तेवासी के कन्धों पर धर्मशासन का गरीयान् दायित्व आया है । अध्यात्म जगत् को अनेक आशाएँ हैं ।
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[ पृष्ठ ४०६ का शेषांश ]
ज्योतिपुंज की ऊर्जा प्रदान की है । उसका विस्तार जन-जन के मन में और अखिल विद्वानों के परिचय में है । आश्चर्य का विषय है, जब उनके व आचार्य प्रवर के मुंह से उनके सबसे कमजोर रहने वाले विद्यार्थी जीवन के संस्मरण सुनते हैं । आई स्टीन, और वाशिंगटन की तरह कभी विकास की एक रेखा भी प्रस्फुटित कर अपने अध्यापक मुनि तुलसी ( आचार्य श्री तुलसी) को शायद उस समय थोड़ा भी सन्तोष जन्य विश्वास नहीं दिया । पर विनय समर्पण और प्रेक्षा जन्य प्रतिभा से आज उन्होंने आचार्य श्री को भी इस नियुक्ति के लिए उद्यत कर दिया । इतिहास की यह आश्चर्य कारिता, विश्व युगों-युगों तक गाता रहेगा ।
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तुलसी- प्रज्ञा