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शब्द व भाव के अमर शिल्पी : संस्कार-निष्पन्न मनीषी एवं प्रबुद्ध साधक : युवाचार्य महाप्रज्ञ
-~-डॉ. छगनलाल शास्त्री
युवाचार्य महाप्रज्ञ (मुनि श्री नथमलजी) एक दिव्य संस्कारी मनीषी हैं, यह मेरे मन पर सबसे पहले तब प्रभाव पड़ा, जब मैं लगभग ३५ वर्ष पूर्व पहले पहल उनके सम्पर्क में आया । उनका वैदुष्य आज हम जिस निखार पर देख रहे हैं, उसके मूल बीज तब भी व्यक्त-अव्यक्त रूप में उनकी वाणी, विवेचन और विश्लेषण में समय-समय पर प्रस्फुटित होते दृष्टिगोचर होते थे। सहज सौम्यता, सहृदयता और सरलता उनके व्यक्तित्व का जन्मजात गुण है, तभी से मैं यह अनुभव करता रहा हूं।
__ तेरापंथ में एक प्रबुद्ध लेखक के रूप में युवाचार्य महाप्रज्ञ का अपना गौरवपूर्ण स्थान है। जैन तत्त्व दर्शन को आज की भाषा व समीक्षात्मक शैली में प्रस्तुत करने का अभिप्रेत लिए उन्होंने अपनी लेखनी उठाई, फलतः 'जैन दर्शन के मौलि तत्त्व', 'अहिंसा तत्व दर्शन' जैसे अनेक ग्रन्थ विद्वज्जगत् के समक्ष आए, जिनका प्रकाशन आदर्श साहित्य संघ द्वारा हुआ। इस सन्दर्भ में मुझे इस महान् मनीषी द्वारा लिखे गए सहस्रों पृष्ठों की सामग्री का संकलन तथा प्रबन्ध संपादन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । उनकी कृतियों को देखते ही यह स्पष्ट आभासित होता है कि वे केवल अधीत विद्या के धनी ही नहीं हैं, प्रत्यग्र क्षयोपशम की विराट् निधि उन्हें समुपलब्ध है।
आचार्यश्री तुलसी की पूना-यात्रा का प्रसंग एक ऐसा ऐतिहासिक प्रसंग है, जब भांडारकर रिसर्च इंस्टीट्यूट, तिलक विद्यापीठ, संस्कृत वाग्वधिनी सभा, डेक्कन कॉलेज आदि राष्ट्रविश्रुत विद्या-केन्द्रों में युवाचार्य महाप्रज्ञ के संस्कृत में भाषण तथा आशुकवित्व के जो प्रेरक प्रसंग बने, दक्षिण की काशी पूना नगरी के विद्वान् हर्ष विभोर हो उठे। पूना के अपने मित्र श्री ए० वी० आचार्य को मैं इस प्रसंग पर नहीं भूल सकता, जिनका हमारे कार्य में हार्दिक योगदान रहा। पूना की उस पहली यात्रा में आचार्यश्री तुलसी केवल नौ दिन ठहरे, लगभग सत्ताईस गोष्ठियों का आयोजन हुआ। विद्या-क्षेत्र पूना में समायोजित इन महत्त्वपूर्ण कार्यों को दृष्टि में रख आचार्यश्री ने कहा था-बंबई के नौ मास और पूना के केवल नौ दिन उनसे कम नहीं हैं। महाराष्ट्र के सुप्रसिद्ध दैनिक 'सकाल' के मुखपृष्ठ पर
तुलसी-प्रज्ञा
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