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युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ: पहले और बाद में
- साध्वी कमलधी
नवीनताओं से भरा इतिहास ही आने वाले युग के लिए एक अपना आकर्षण छोड़ जाता है, लेकिन वहीं वर्तमान में कोई आकर्षण और आश्चर्य शून्य भी नहीं होता । समान जीवनक्रम में तरतमता ऐतिहासिक आश्चर्य नहीं है, किन्तु पूर्वापर अकल्पित घटनाएं अगणित चेतनाओं का चित्तरंजन करती हैं । युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ बाल्य काल के जीवन से लेकर अपने विद्यार्थी जीवन तक ही सीधे, सरल एवं निजीय सुविधाओं से अनभिज्ञ, अवश्य ही समतायोगी थे । किन्तु औरों की दृष्टि में तथा स्वयं के अनुभव में वे एक भोली प्रतिमा ही माने जायेंगे । पर आज उनके पाण्डित्य पूर्ण विचार, चिन्तन व साधना से सारे बाल, युवक और वृद्ध जो अनायास आकृष्ट हो रहे हैं या यों कहूं कि आचार्य पद के मांगल्य-सूचक युवाचार्यत्व की घोषणा से जो सभी लोग भाव-विभोर हो रहे हैं, वह जन-जन की संभावना में नवप्रभात का सूचक है ।
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टमकोर एक छोटा-सा रेतीला गांव है। वहां वृक्ष - पौधे बहुत कम हैं । कटीली झाड़ियाँ एवं कई जंगली तर ही खड़े दिखाई देते हैं, किन्तु आज वहाँ एक कल्पवृक्ष ऊगा है । जिसके विकास क्रम को प्रारम्भ से लेकर आज तक लोगों ने देखा है और विकास का यह क्रम अपनी पराकाष्ठा को अवश्य प्राप्त होगा । जिन्होंने आचार्य प्रवर द्वारा सिञ्चन, रक्षण एवं सजीव प्रेरणाओं को प्राप्त कर स्वयं की योगनिष्ठा तथा प्रतिष्ठा का आकलन किया है। ऐसे आचार्य को पाकर कौन नहीं संभावनाओं की नई चमक, नई ऊर्जा के लिए गौरवान्वित होगा । कौन नहीं जीवन दिशा की ऊर्ध्वगामी ज्योतिधारा पाकर उनके प्रति आभार पूर्ण बनेगा ?
युवाचार्यश्री न केवल बौद्धिक चिन्तक वर्ग के लिए दार्शनिक और चिन्तक ही हैं, किन्तु व्यवहार मधुरता, विनय आचरण तो उन्हें और भी अधिक प्रिय हैं । मेरी संसार पक्षीय ज्येष्ठ मातुश्री साध्वी श्री बालुजी ( युवाचार्य श्री की संसार पक्षीय माताजी ) कहा करती थीं कि तुम्हारे बड़े पिता (श्री तोलामल जी चोरड़िया) के स्वर्गवास होने के पश्चात् वे अपने चाचा ( पन्नालालजी चोरड़िया) के पास ही अधिक रहते थे । इनके चाचा इनकी विनम्रता से इतने प्रभावित थे कि संसार की सम्पूर्ण विलासिता को लाँघकर स्वयं युवाचार्य श्री के साथ दीक्षित भी होना चाहते थे । उनका विश्वास था कि ऐसा पुत्र ही ताण कर सकता है । फिर न जाने मेरा इस दुनिया में कौन होगा ? पर नियति से विवश जी तोड़कर
खण्ड ४, अंक ७-८
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