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मुनि श्री की भावयित्री प्रतिभा उन्हें गूढ़ दार्शनिक अगम्य तत्त्ववेत्ता, सूक्ष्म विवेचन और विशद व्याख्याता बनाने में निखरी है। "जैन दर्शनःमनन और मीमांसा," "अहिंसा तत्त्व दर्शन" "श्रमण महावीर." तथा "उत्तराध्ययन" और "दशवैकानिक" सूत्रों के समीक्षात्मक अध्ययन में मुनिश्री का गहन विचारक, व्यापक अध्येता और मौलिक चिन्तक का रूप सामने आया है। मुनिश्री की व्याख्या और विवेचना में जो तेजस्विता और मौलिकता प्रतिबिम्बित होती है, वह उनके धर्म, दर्शन, साहित्य, इतिहास, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, भाषाविज्ञान आदि विविध विषयों के समन्वित अध्ययन, मनन और मन्थन का परिणाम है।
जैनधर्म क्रान्तिवादी और बौद्धिक चिन्तन का परिणामी धर्म रहा है । पर मध्ययुग में अन्य धर्मों की भांति जैनधर्म भी अन्ध परम्पराओं का शिकार बना और उसका तेज कुन्द हो गया। वह श्रद्धालुओं तक सीमित रह गया । आधुनिक युग में इस बात की बड़ी जरूरत थी कि जैनधर्म और दर्शन की विवेचना बौद्धिक संवेदना के धरातल से की जाए और उसे धर्म या सम्प्रदाय के रूप में नहीं वरन् जीवन-मूल्य के रूप में प्रतिपादित व प्रतिष्ठित किया जाए। मुनि श्री नथमलजी ने इस ऐतिहासिक आवश्यकता की पूर्ति करने में अपनी विलक्षण प्रतिभा और बौद्धिक जागरूकता का अच्छा परिचय दिया है । फलस्वरूप भारतीय विश्वविद्यालयों के अनेक आचार्य और भारतीय मनीषा के अग्रगण्य प्रतिनिधि मुनि श्री के वक्तव्यों
और ग्रन्थों से जैन दर्शन को सही परिप्रेक्ष्य में समझ सके । राजस्थान विश्वविद्यालय में जैन न्याय पर दिये गये मुनि श्री के विशेष व्याख्यान हमारे इस कथन के साक्षी हैं।
___ मुनि श्री कोरे शुष्क दार्शनिक नहीं हैं। उनके पास साधना और संयम का विशेष बल है। भारतीय योग-परम्परा के व्यापक संदर्भ में उन्होंने जैनयोग-साधना का, प्रेक्षाध्यान का सिद्धान्तपरक और अनुभूतिमूलक विवेचन, विश्लेषण और प्रयोग किया है। इस प्रकार मुनि श्री ने दर्शन के क्षेत्र में वैज्ञानिकता को प्रतिष्ठित किया है और विज्ञान के क्षेत्र में दार्शनिकता को प्रतिष्ठित करने के वे पक्षधर हैं ।
ऐसे मनीषी संत, साधक मन, वैज्ञानिक दार्शनिक और प्राज्ञकवि को आचार्य श्री तुलसी ने अपना उत्तराधिकारी घोषित कर अभिनन्दनीय कार्य किया है। इस घोषणा से श्रद्धालु भक्तों में ही नहीं, बुद्धिजीवियों में भी प्रसन्नता की लहर व्याप्त हुई है । इस अवसर पर मैं युवाचार्य महाप्रज्ञ श्री के प्रति अपनी शुभ कामनाएं प्रकट करता हूं और आशा करता हूं कि उनके प्रज्ञाभाव से शील और समाधि का विशेष वातावरण बनेगा।
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तुलसी-प्रज्ञा