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________________ मनीषी संत, साधक मन, वैज्ञानिक दार्शनिक और प्राज्ञकवि -डा. नरेन्द्र भानावत मुनि श्री नथमलजी तेरापंथ धर्म संघ के ही नहीं समस्त जैन जगत के और कहना तो यह चाहिए कि सम्पूर्ण भारतीय दार्शनिक परम्परा के जगमगाते नक्षत्र हैं । वे सच्चे अर्थों में दार्शनिक हैं। उन्होंने ज्ञान को आत्मसाक्ष्य भाव से देखा है और उसे आचरण में उतारा है। इसी लिए ज्ञान की उष्मा उन्हें मात्र तार्किक नहीं बनाती वरन् अनुभूति के प्रकाश में रूपांतरित होकर, उन्हें प्राज्ञ-महाप्राज्ञ बनाती है। मुनि श्री नथमलजी से मेरा पन्द्रह-सोलह वर्षों से परिचय है । उनका बहुरंगी और बहुआयामी साहित्य मैंने पढ़ा है। कई बार उनसे बौद्धिक संलाप करने के भी अवसर आये हैं । मैंने उन्हें सदा समुद्र की तरह गंभीर, हिमालय की तरह उन्नत और आकाश की तरह अवकाशी पाया है । जीवन के ठोस यथार्थ धरातल से बात शुरू कर वे उसे उदात्त आदर्शों और जीवन-मूल्यों की ओर इस प्रकार अग्रसर करते हैं कि श्रोता या पाठक उससे अभिभूत हुए बिना नहीं रहता। __ मुनि श्री कारयित्री एवं भावयित्री दोनों प्रतिभाओं के समान रूप से धनी हैं। उनकी कारयित्री प्रतिभा से संस्कृत और हिन्दी भाषा में अनेक काव्य कृतियों का निर्माण हुआ है। संस्कृत काव्य “सम्बोधि" में साधना क्षेत्र में दुर्बल और शंकालु मेघ कुमार महावीर से सम्बोधि पाकर अपने आत्म-पुरुषार्थ को जाग्रत करता है। "अश्रुवोणा" में अश्रुप्रवाह के माध्यम से चन्दनबाला का संदेश प्रेषित किया गया है। "तुला-अतुला" में मुनि श्री के आशुकवित्व की परिचायक विविध रचनाएं संग्रहीत हैं। हिन्दी काव्य संग्रह “फूल और अंगारे" तथा "गूंजते स्वर : बहरे कान" में मुनि श्री की ऐसी कविताएं संकलित हैं जो चिन्तनशील होती हुई भी आत्मानुभूति के रस से सिक्त हैं, अनेकान्तधर्मी होती हुई भी भावना के घनत्व से आर्द्र हैं और लोकभूमि से जुड़ी होकर भी आत्मनिष्ठ हैं । अर्थ-गाम्भीर्य और शब्दलालित्य से वे सम्पन्न हैं । मुनि श्री का साधक मन जब भीतर की गहराई में डूबता है, तब सहज आनन्द की निश्छल और निरावरण अभिव्यक्ति ही कविता के रूप में फूट पड़ती है । मुनि श्री की कविता आत्मोल्लास के क्षण में लिखी होने पर भी लोकोल्लास को अभिव्यक्त करती है। "स्व" को "सर्व" में विलीन करने की यह रचना प्रक्रिया मुनि श्री के सन्त और साधक व्यक्तित्व का परिणाम है। खण्ड ४, अंक ७-८ ४०१
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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