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को ग्रहण करने में अत्यधिक सफल हुआ है ।" सबके मन को समाहित कर आर्यरक्षित दुर्बलका पुष्यमित्र का नाम आचार्यपद के लिये चुना । इससे संघ में सर्वत्र प्रसन्नता की लहर दौड़ गई थी ।
तेरापंथ धर्मसंघ में कवि, लेखक, वक्ता, विद्वान्, दार्शनिक एवं दायित्व वहन करने में सक्षम सैकड़ों श्रमण श्रमणी हैं । आचार्यप्रवर ने अपने प्रवचन में एक दिन श्रमण श्रमणियों की योग्यता का उल्लेख करते हुए कहा था- "मेरे संघ में साध्वियाँ भी ऐसी हैं, अगर मैं उनको मेरा सम्पूर्ण दायित्व सौंप दूं तो बहुत अच्छे ढंग से आचार्य पद के दायित्व को संभाल सकती हैं । यह हमारे धर्मसंघ के लिए गौरव की बात है ।"
राजलदेसर मर्यादा महोत्सव पर आचार्यश्री तुलसी ने विविध विशेषताओं के धनी, सर्वाधिक सुयोग्य महाप्रज्ञ मुनि श्री नथमल जी का नाम अपने उत्तराधिकारी के रूप में घोषित किया । युवाचार्य के रूप में इस बार धर्मसंघ को मर्यादा महोत्सव की यह विशिष्ट उपलब्धि हुई ।
महाप्रज्ञ श्री जैन दर्शन के अधिकृत विद्वान्, ऊर्ध्वमुखी व्यक्तित्व के धनी उच्चकोटि क्रे दार्शनिक एवं आचार्यश्री तुलसी के सफल भाष्यकार हैं ।
योगधारा को नए संदर्भ में प्रस्तुत कर महाप्रज्ञ श्री ने समग्र जैन समाज को अनुपम दे दी है । बहुविध साहित्य के माध्यम से धर्म का वैज्ञानिक रूप प्रस्तुत कर युवा पीढ़ी को उन्होंने धर्म की ओर आकृष्ट किया है ।
विशिष्ट ध्यान योग की साधना से मुनि श्री दुर्बलिका पुष्यमित्र की भाँति कृशकाय है | ज्ञान- सम्पदा, ध्यान - सम्पदा एवं शरीर - सम्पदा से आप इस युग के द्वितीय दुर्बलिका पुष्यमित्र ही प्रतीत होते हैं ।
संघ आपको युवाचार्य के रूप में पाकर धन्य हुआ है । बधाई के पात्र हैं – आचार्य श्री तुलसी । योग्य व्यक्ति को योग्य अपने दायित्व को वहन करने में पूर्णतः सफल हुये हैं ।
इस अवसर पर कोटिशः पद पर प्रतिष्ठित कर वे
महाप्रज्ञश्री ने अपनी साहित्य - साधना, ध्यान-साधना से बहुत कुछ समाज को दिया है | विश्वास है अब उनकी ऊर्ध्वगामी चेतना धर्मसंघ को उन्नति के शिखर पर आरूढ़ करने में सक्षम सिद्ध होगी !
बधाई ! बधाई !! बधाई !!!
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तुलसी- प्रज्ञा