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के वत्ते?
सत्तू य इइ केसी
वचन-वीथी अणेगाणं
गौतम ! तुम हजारों-हजारों शत्रुओं मझे चिट्ठसि गोयमा ! । के बीच खड़े हो । वे तुम्हें जीतने को तुम्हारे ते य ते अहिगच्छन्ति
सामने आ रहे हैं । तुमने उन्हें कैसे पराजित कहं ते निज्जिया तुमे ? ॥ किया ?
एगे जिए जिया पंच एक को जीत लेने पर पाँच जीते गए। पंच जिए जिया दस।
पांच को जीत लेने पर दस जीते गये। दसों दसहा
जिणित्ताणं सव्वसत्तू जिणामहं ॥ को जीत कर मैं सब शत्रुओं को जीत लेता हूं।
शत्रु कौन कहलाता है ? —केशी ने गोयममब्बवी । तओ केसि बुवंतं तु
गौतम से कहा। केशी के कहते-कहते ही गोयमो इणमब्बवी॥ गौतम इस प्रकार बोले
एगप्पा अजिए. सत्तू एक न जीती हुई आत्मा शन्नु है । कषाय कसाया इन्दियाणि य। ते जिणित्त जहानायं और इन्दियां शत्रु हैं। मुने ! मैं उन्हें जीत
विहरामि अहं मुणी ! ॥ कर नीति के अनुसार विहार कर रहा हूं। साहु गोयम ! पन्ना ते ।
___ गौतम ! उत्तम है तुम्हारी प्रज्ञा ! छिन्नो मे संसओ इमो
तुमने मेरे इस संशय को दूर किया है। मुझे अन्नो वि संसओ मज्झं।
एक दूसरा संशय भी है। गौतम ! उसके तं मे कहमु गोयमा ! ॥
विषय में भी तुम मुझे बतलाओ। दीसन्ति बहवे लोए
इस संसार में बहुत जीव पाश से बंधे पासबद्धा
सारणा सरीरिणो।
हुए दीख रहे हैं। मुने ! तुम पाश से मुक्त
म मुक्कपासो लहुन्भूओ और पवन की तरह प्रतिबंध-रहित होकर कैसे
कहं त विहरसी ? मुणी! ॥ विहार कर रहे हो ? ते पासे सव्वसो छित्ता
मुने ! उन पाशों को सर्वथा काट कर, निहन्तूण उवायओ। मुक्कपासो लहुब्भूओ
उपायों से विनष्ट कर मैं पाश-मुक्त और विहरामि अहं मुणी ! ॥ प्रतिबन्ध रहित हो कर विहार करता हूं।
पासा य इइ के वृत्ता? पाश किसे कहा गया है ? --केशी ने केसी गोयममब्बवी। कसिमेवं बवंत त गौतम से कहा। केशी के कहते-कहते ही
गोयमो इणमब्बवी ॥ गौतम इस प्रकार बोलेरागहोसादओ तिव्वा
प्रगाढ़ राग-द्वेष और स्नेह भयंकर पाश नेहपासा भयंकरा।
हैं । मैं उन्हें काट कर मुनि-धर्म की नीति ते छिन्दित्त जहानायं
और आचार के साथ विहार करता हूं। विहरामि जहक्कम ।।
-उत्तरज्झयणाणि, २३॥३५-४३
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